बात उस समय की है, जब पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी एक आत्मघाती हमले में मारे गए थे। प्रसिद्ध अमेरिकी पत्रिका “ टाइम” ने उस हादसे की तस्वीर प्रकाशित नहीं की। लेकिन अपने इस फैसले के बारे में एक संपादकीय जरूर प्रकाशित किया।
“टाइम” ने लिखा, बावजूद इसके, कि यह हादसा दुनिया पर असर डालने वाली घटनाओं में से एक था, बावजूद इसके, कि राजीव गांधी विश्व के एक प्रमुख नेता थे, उन्होंने संपादकीय मंडल के विचार-विमर्श के बाद उनकी मृत्यु की तस्वीर प्रकाशित नहीं करने का फैसला किया।
“टाइम” के संपादकीय में लिखा गया था, कि “वे तस्वीरें प्रकाशित नहीं करने का फैसला इसलिए किया गया कि मौत ने उन्हें वह गरिमा नहीं बख्शी जिसके वह हकदार थे। हम वे तस्वीरें नहीं प्रकाशित कर उनकी गरिमा की रक्षा करना चाहते थे।“
यह बात हम भारतीय समाचार टीवी चैनलों को याद दिला कर एक अनुरोध करना चाहते हैं, कम से कम लाशों की तसवीरें तो प्रसारित नहीं करिए।
बम विस्फोट हो, या चामुंडा मंदिर में भगदड़, या लखनऊ फ्लाईओवर के धंसने से उसके नीचे दबे मृत शरीर- उनकी तस्वीरें दिखा कर क्या आप किसी मृतक की गरिमा का अनादर नहीं कर रहे? क्या उनके शोकग्रस्त परिवारों के प्रति आप यत्र- तत्र बुरी हालत में पड़ी लाशों की तस्वीरें टीवी पर दिखा कर उस हादसे से भी ज्यादा क्रूरता नहीं बरतते?
कितने ही अखबारों ने भोपाल गैस कांड के बाद लाशों की वीभत्स तस्वीरें छपने से परहेज किया था। तस्वीरें छपीं जरूर, लेकिन प्रतीकात्मक।
हादसों की रिपोर्टिंग करते समय क्या टीवी चैनलों पर भी पत्रकारिता की इस गरिमामय परंपरा का पालन नहीं किया जा सकता? - साभार : जोश -गरम चाय
1 comment:
वक्त के साथ प्राथमिकताएं बदल जाती हैं।
दृश्यृ-श्रव्य माध्यम हैं तो उनका प्रयोग वैसे ही किया जाना चाहिए। लेकिन नवसिखियों की टीम्स क्या जिम्मेदारी निभाएगी?
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