पापी पेट के लिए... नौकरी.....
आप के लिए जीने की चाहत...
नहीं तो हम इस फिजां में....
कहाँ मुर्दे से कम हैं.....
अलविदा कहने को दिल बहुत करता है....
लेकिन जिन्दा रहने के लिए हूक-पीर है
क्या करूँ ..... मुझे किसी का बेसब्री से इन्तजार है ...
उस पतझड़, उस बहार की, जो लौट कर नही आई .....
3 comments:
Bahut hiBhavaporn Rachana .
sसही अभिवयक्ति हराभार्
बहुत सही!
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