क्या भारतीय टीवी चैनल ऎसा नहीं कर सकते?
“टाइम” ने लिखा, बावजूद इसके, कि यह हादसा दुनिया पर असर डालने वाली घटनाओं में से एक था, बावजूद इसके, कि राजीव गांधी विश्व के एक प्रमुख नेता थे, उन्होंने संपादकीय मंडल के विचार-विमर्श के बाद उनकी मृत्यु की तस्वीर प्रकाशित नहीं करने का फैसला किया।
“टाइम” के संपादकीय में लिखा गया था, कि “वे तस्वीरें प्रकाशित नहीं करने का फैसला इसलिए किया गया कि मौत ने उन्हें वह गरिमा नहीं बख्शी जिसके वह हकदार थे। हम वे तस्वीरें नहीं प्रकाशित कर उनकी गरिमा की रक्षा करना चाहते थे।“
यह बात हम भारतीय समाचार टीवी चैनलों को याद दिला कर एक अनुरोध करना चाहते हैं, कम से कम लाशों की तसवीरें तो प्रसारित नहीं करिए।
बम विस्फोट हो, या चामुंडा मंदिर में भगदड़, या लखनऊ फ्लाईओवर के धंसने से उसके नीचे दबे मृत शरीर- उनकी तस्वीरें दिखा कर क्या आप किसी मृतक की गरिमा का अनादर नहीं कर रहे? क्या उनके शोकग्रस्त परिवारों के प्रति आप यत्र- तत्र बुरी हालत में पड़ी लाशों की तस्वीरें टीवी पर दिखा कर उस हादसे से भी ज्यादा क्रूरता नहीं बरतते?
कितने ही अखबारों ने भोपाल गैस कांड के बाद लाशों की वीभत्स तस्वीरें छपने से परहेज किया था। तस्वीरें छपीं जरूर, लेकिन प्रतीकात्मक।
हादसों की रिपोर्टिंग करते समय क्या टीवी चैनलों पर भी पत्रकारिता की इस गरिमामय परंपरा का पालन नहीं किया जा सकता? - साभार : जोश -गरम चाय
सीमाओं में रहे, मुंबई की ये मनसे .....
बडे भाई निशीथ जोशी की कलम से
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स्वर्गीय आपा और लाला भाई (मो माबूद ) के नाम जिनके बिना ये बेटा इतना बड़ा नहीं हो सकता था। आपकी बहुत यद् आती है। इंशा अल्लाह कभी तो मुलाकात होगी। वैसे तो आप हरदम मेरे साथ हो। कभी तहजीब के रूप में तो कभी दुआओं के ताबीज के रूप में। सिर्फ़ यही है मेरी जिंदगी की कमाई -------निशीथ
खौफ ------
रोक लो इन हवाओं को
मत आने दो शहर से
मेरे गांव की ओर
वरना मंगल मामा
हिंदू हो जाएगा
और रहमत चाचा
मुसलमान हो जाएगा
और रहमत चाचा मुसलमान.....
मालेगांव की आग पहुंची उत्तर प्रदेश
मालेगांव बम धमाके की आग अब उत्तर प्रदेश में सुलगने लगी है । गोरखपुर एक बार फिर सुर्खियों में है । इस बार साध्वी प्रज्ञा को लेकर गोऱखपुर का नाम सामने आया है । गोरखपुर के विधायक पर साध्वी के तार जुड़े होने के आरोप है । गोरखपुर के सांसद और पूर्वी उत्तर प्रदेश के हिंदू नेता योगी आदित्य नाथ भी घेरे में है । यह वही योगी है,जिन पर यूपी की पुलिस ने एक बार हाथ डालने की कोशिश की थी, तब गोरखपुर समेत पूरे उत्तर प्रदेश में बवाल खड़ा हो गया था । गोरखपुर में आगजनी हुई दंगा हुआ । सब राजनीति से प्रेरित है ।
पहले खादी से तो अब भगवा से राजनीति
एक जमाना था जब खादी से देश की राजनीति संचालित होती थी, लेकिन समय बदल गया है । देश की राजनीति खादी नहीं भगवा से चल रही है । भगवा है ठीक है, लेकिन भगवा की आड़ में चंद राजनेता गंदी राजनीति कर रहे हैं । हो सकता है साध्वी भी इसी गंदी राजनीति का शिकार बनी हो, लेकिन जांच तो होनी ही चाहिए ।
बहुत कुछ छिपा है बीहड़ों में
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की बीच पड़ते बीहड़ों में वह बहुत कुछ सच्चाई छिपी है, जो एटीएस को तलाश है । चंबल की घाटी में हर वह सुराग मिल सकता है, जो एटीएस को शायद उत्तर प्रदेश के तराई इलाके से नहीं मिल सकती है । मालेगांव ब्लास्ट के तार उत्तरप्रदेश से होते हुए जम्मू-कश्मीर तक पहुंच गए हैं। मुंबई एटीएस ने बुधवार को कानपुर से एक शख्स को हिरासत में लिया है। उस शख्स का नाम दयानंद पांडे बताया जाता है और एटीएस को उसके वीएचपी से जुड़े होने की आशंका है। दयानंद को लेकर एटीएस लखनऊ रवाना हो गई। लखनऊ लाकर उससे मालेगांव ब्लास्ट मामले में पूछताछ की गई।एटीएस ने सोमवार को मुंबई की अदालत में एक अर्जी दाखिल कर एक प्रमुख हिंदू नेता से पूछताछ करने की इजाजत मांगी है तथा इस संबंध में उत्तरप्रदेश सरकार से सहयोग दिलाने की बात कही है। एटीएस ने फरुखाबाद और पूर्वी उत्तरप्रदेश में गुपचुप अभियान चलाकर मालेगांव विस्फोटों के लिए ठोस सबूत जुटाए हैं।भाजपा उत्तरप्रदेश से पार्टी के सांसद आदित्यनाथ का खुलकर बचाव में उतर आई है । आदित्यनाथ ने मालेगांव विस्फोट में उनका हाथ होने के बारे लगाई जा रही अटकलबाजियों के बाद मंगलवार को एटीएस को उन्हें गिरफ्तार करने की चुनौती दी थी।
चुनौती छोड़ कर जांच में सहयोग करे नेता
अगर साध्वी सही है, योगी आदित्यनाथ सही है, दयानंद पांडेय ने कोई गलत काम नहीं किया है तो भाजपा और संघ एटीएस को चुनौती क्यों दे रही है ? सभी राजनीतिक दलों को एक होकर इसके लिए अपेन स्तर पर एक जांच कमेटी तैयार कर मामले की सही जांच करना चाहिए । पुलिस और कानून को चुनौती देकर आखिर हमारे राजनेता साबित क्या करना चाह रहे हैं । मामले को राजनीतिक तूल दिया जा रहा है, जो देश के घातक है ।
देह दर्शन या ड्रग्स को बढ़ावा
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सुप्रीम कोर्ट द्वारा सर्वजिनक स्थानों पर धूम्रपान पर पाबंदी लगाने के बाद उम्मीद जगी थी कि लोग सुधर जाएंगे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो सका । जब सिगरेट, शराब और अन्य तरह के नशीले ड्रग्स पर रोक है तो फैशन में इतनी मस्ती क्यों ? सैंसर बोर्ड सो कर फिल्में पास क्यों कर देता है । यही नहीं धूम्रपान पदार्थों के विज्ञापन पर भी रोक है, लेकिन फैशन में धूम्रपान पर रोक क्यों नहीं है ?
आखिर भगवा धारियों में उबाल क्यो ?
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