सोचा था उसका कत्ल कर देंगे ...
पर ख़ुद का ही कत्ल करवा बैठे ...
जब उसे सजा देने की बारी आई तो ...
... ख़ुद पर इल्जाम लगा बैठे ?
हम रुखसत हुए उनकी यादें लेकर ...
वे मस्त हुए मेरी कब्र पर आकर ...
ऊपर से आँखों में अश्क थे,
अन्दर से चमक, मेरे रुखसत होने की
मेरा दिल फिर भी तड़प रहा था ....
उसका दिल मार रहा था हिलोरे ...
कब्र की मिटटी मेरे दिल की आंसू से हो रही थी गीली ...
उसके बनावटी आंसू से, चेहरा नही ...
उसका मेकअप हो रहा था धुआं ....
3 comments:
सेठ साहब आप तो खासे शायर हो गए हम तो समझते आप सिर्फ पत्रकार ही हो।बधाई हो लगे रहा अच्छा लिखा है।
dharmendrabchouhan.blogspot.com
thanx bhai....
thanx bhai....
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