भाइयों,
मैं मरना नही चाहता ।
वो मुझे कत्ल कर देंगे तो मैं तुम्हारे दिलों में जिन्दा रहूँगा ।
मैं आरागोन की नज्मों में जिंदा रहूँगा...
उन मिसरों में जो आनेवाले खूबसूरत दिनों की बशारत देते हैं ।
मैं पिकासों के फन में जिंदा रहूँगा ...
राबसन के गीतों में जिंदा रहूँगा ।
और सबसे ज्यादा ...
और सबसे बेहद तरीके से ...
मैं रफीकों के कामयाब व कामरान कहकहों में जिंदा रहूँगा ।
इसे 'लखनऊ की पाँच रातें ' के 'गलीना 'से लिया गया है, जिसे 'अली सरदार जाफरी 'ने अपने मास्को यात्रा के दौरान लिखी । जाफरी जुलाई १९५५ में मास्को यात्रा पर थे, जहाँ एक दिल के रोगी शायर ने मरते हुए पलों में बुदबुदाये थे । गलीना उस शायर की डाक्टर थी, जो शायर को किसी तरह से बचाना चाह रही थीं ॥ एक मार्मिक रचना से लबरेज इस लेख में डाक्टर और मरीज के संबंधों को उकेरा गया है । जाफरी उत्तर प्रदेश के गोंडा जनपद से जुड़े बलरामपुर में पैदा हुए, जो अब अलग जनपद बन चुका है ।
1 comment:
बढिया रचना प्रेषित की आभार।
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