काजू भुनी प्लेट में, विहस्की गिलास में ।
उतरा है रामराज विधायक निवास में...
तेरा चेहरा...
हथेलियों पर देखा था जिसका चेहरा .. रेखाएं मिलती, सिकुड़ती, फैलती ... फिर तन सा जाता उसका चेहरा ... यह चेहरा ही तो है जिसे रोज हथेलियों में .... पढ़ा करते हैं .....
1 comment:
सुंदर कविता। बधाई।।
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