मधुर भंडारकर की फिल्म 'फैशन' में भारतीय फिल्म की नायिकाओं ने सभी पराकाष्ठा पार कर दी है । देह दर्शन के अलावा धूम्रपान 'फैशन' का सबसे बड़ा नकारात्मक हिस्सा है । फिल्म की नायिका कंगना राणावत और प्रिंयका चोपड़ा जिस तरह खुलेआम सिगरेट के धुंए के छल्ले उडाती नजर आईं, तो उससे भी कहीं ज्यादा बोल्ड शराब पीने की सीन रही है । अधनंगे बदन के साथ सिगरेट और शराब की मस्ती वाली 'फैशन' समाज को क्या संदेश देना चाह रही है, यह फिल्म देखने वाले भी नहीं बता सके । 'डान' फिल्म में हीरो शाहरुख खान ने सिगरेट के धुंए उड़ाने पर जब बवाल खड़ा हो सकता है, तो फैशन की दारू और सिगरेट सैंसर बोर्ड को क्यों नजर नहीं आए । फैशन में तो हद ही कर दी है, मिनट दर मिनट सिगरेट के कश हीरो और हीरोइन लगा रहे हैं, लेकिन किसी को परवाह नहीं है । फिल्म में कंगना राणावत को ड्रग्स लेते जैसे दिखाया है, क्या यह उचित है ? कंगना राणावत ही क्यों प्रिंयका चोपड़ा भी क्लब में ड्रग्स लेती हैं, उसके बाद अपना सबकुछ लुटा देती हैं (हालांकि चोपड़ा इससे पहले ही अपना सबकुछ लुटा चुका होती है)। फैशन में मुंबई की क्लबों को जिस तरह से दिखाया गया है, सही हो सकता है, लेकिन फिल्म में सिगरेट, शराब, स्मैक, नशीले इंजैक्शन लेते होरी और हीरोइन ने सभी मर्यादा लांघ कर लोगों को गलत संदेश दिया है ।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा सर्वजिनक स्थानों पर धूम्रपान पर पाबंदी लगाने के बाद उम्मीद जगी थी कि लोग सुधर जाएंगे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो सका । जब सिगरेट, शराब और अन्य तरह के नशीले ड्रग्स पर रोक है तो फैशन में इतनी मस्ती क्यों ? सैंसर बोर्ड सो कर फिल्में पास क्यों कर देता है । यही नहीं धूम्रपान पदार्थों के विज्ञापन पर भी रोक है, लेकिन फैशन में धूम्रपान पर रोक क्यों नहीं है ?