यह कैसी श्रद्धांजलि ?






















मुंबई में आतंकी हमले को एक माह पूरा भी नही हुआ की जालंधर (पंजाब) में सत्ताधारी नेताओं और बड़ी हस्तियों ने नए साल के पहले ही पार्टी का जमकर लुत्फ़ उठाया । इन लोगों ने आंतकी हमलों में शहीद हुए शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक दिन पहले नया साल न मनाने का nirday लिया था । इस पार्टी को मुख्यमंत्री के करीबी रहे लोगों ने आयोजित की । जिसमें मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के करीबी और बडे पद पर काम कर रहे नेता की पत्नी ने तो कमाल ही कर दिया । जुल्फे झटकीं, युवा पार्टनर के साथ खूब थिरकीं । पंजाब पुलिस के डीएसपी भी दारू की गिलास के साथ ठुमके लगाए । क्या खूब दी है शहीदों की श्रद्धांजलि...

ब्रिटिश फौज की वर्दी और गांधी


गांधी के ब्रिटिश फौज की वर्दी पहनने के तथ्य का विवाद के रूप में तूल पकड़ना देख रक्षा मंत्रालय बचाव की मुद्रा में आ गया है और उसने अब प्रस्तावित ‘शताब्दी सैनिक समाचार स्मारिका’ में आवश्यक फेरबदल की प्रक्रिया शुरू कर दी है।रक्षा सूत्रों के अनुसार रक्षा मंत्रालय की पत्रिका के 2 जनवरी 2009 को 100 साल पूरे होने के मौके पर प्रकाशित की जा रही इस स्मारिका में गांधी जी के ब्रिटिश फौज में शामिल होने संबंधी समाचार को संक्षिप्त और सम्पादित किया जा रहा है और उसमें तमाम अतिश्योक्तियों को अंतिम समय में हटाया जा रहा है।रक्षा सूत्रों ने कहा कि इस पूरे प्रकरण को विवाद के तौर पर पेश करना गैर जरूरी है क्योंकि स्वयं महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा ‘माई एक्सपीरियेंस विद ट्रुथ’ में विस्तार से इस बात का जिक्र किया है कि किन परिस्थितियों में उन्होंने ब्रिटिश फौज की वर्दी पहनी थी और वर्ष 1889 के समय बोअर की लड़ाई में उन्होंने किस तरह पहल करते हुए एम्बुलेंस यूनिट गठित की थी।रक्षा प्रवक्ता सितांशु कार से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने सवाल को टालते हुए कहा, “आप 2 जनवरी 2009 तक का इंतजार करिये जब सैनिक समाचार की शताब्दी स्मारिका का लोकार्पण किया जाएगा। इस अंक के लिए हमारी एक मजबूत सम्पादकीय टीम है जो सभी विषयों के साथ उचित न्याय कर रही है और इतिहास के तथ्यों को जस का तस पेश करने में यह टीम पूरी तरह सक्षम है”।इस बारे में कार ने कुछ भी कहने से इंकार कर दिया कि मामले के विवाद के रूप में पेश किए जाने के बाद मूल लेख को बदला जा रहा है या नहीं।‘यूनीवार्ता’ ने सैनिक समाचार की इस स्मारिका की अग्रिम प्रति के आधार पर इतिहास के इस बेहद अनजाने तथ्य को पेश किया था कि गांधी जी भी ब्रिटिश फौज में शामिल हुए थे और उन्होंने ब्रिटिश फौज की वर्दी भी पहनी थी। स्मारिका में गांधी जी का फौजी वर्दी वाला चित्र भी प्रकाशित हो रहा है जिसे हटाए जाने की योजना नहीं है।रक्षा सूत्रों ने कहा कि स्मारिका में जो कुछ प्रकाशित हो रहा है उसमें कुछ भी नया नहीं है और इसमें 2 जनवरी 1909 से लेकर आज तक के सैनिक समाचार और फौजी अखबार के लेखों का संकलन ही है। गांधी जी के बारे में जिस चर्चित लेख ने बहस का रूप लिया है वह तीन दशक से अधिक पहले प्रकाशित हुआ था।रक्षा सूत्रों के अनुसार स्मारिका की सम्पादकीय टीम इतिहासकारों की राय ले रही है और लेख को इस तरह सम्पादित किया जा रहा है कि गांधीवादियों की भावना को कोई ठेस न पहुंचे । - मुकेश कौशिक

आखिर कब तक उडेंगे इंसानी चिथड़े ?


एक बार फिर पाकिस्तान को आतंकवादी देश ठहराने वाले ठोस सबूतों के साथ सरकार चिंघाड़ रही है, लेकिन अमेरिका तमाशबीन बना हुआ है । एक हद तक कूटनीति सही है लेकिन कब तक ? एसा लगता है की हम कुछ दिन बाद सब भूल जाते हैं,नेता कुछ एसा ही सोचते होंगे । पाकिस्तान के खिलाफ १५ ठोस सबूत है , भारत कूटनीति का सहारा ले रहा है । अगर यही हमला अमेरिका पर हुआ होता तो पाकिस्तान को दूसरा अफगानिस्तान बनते देर न लगता । तालिबान को ध्वस्त करने वाला अमेरिका सयंम बरतने को कह रहा है । ठीक है सयंम में रहना चाहिए, लेकिन कब तक ?

लोगों की लाशों की परवाह किए हम पाकिस्तान के साथ तू तू मैं मैं की राजनीति में लगे हुए हैं । चाहे वो सरकार हो, चाहे वो मीडिया हो या चाहे जो भी जिम्मेदार लोग हों, हर कोई युद्ध और युद्ध की राजनीति की बातें कर रहा है। सवाल ये है कि खुद को बचाने के लिए हम क्या कर रहे हैं? हम अपने आपको सुरक्षित रख पाएं, अपने लोगों पर आंच न आने पाए,इसका कोई उपाय करें, उससे ज्यादा जरुरी कई नेताओं को ये लग रहा है कि वो कैसे टीवी चैनलों पर जाकर बहस में हिस्सा लें। और ये बता पाएं कि कैसे उसकी पार्टी या उनकी सरकार का इससे कोई लेना देना नहीं है ।

यह ठीक है की युद्ध किसी मामले का हल नही है, लेकिन आतंकवाद को ख़तम करने के लिए क्या हो रहा है । अगर पाक में आतंकी ट्रेनिंग कैम्प हैं तो उसे पर कार्यवाई कब तक होगी ? ऐसे कई सवाल उठते रहेंगे, जब तक आतंक का समूल सफाया नही हो जाता है । और यह कब तक होगा नही पता ? बेगुनाह जनता के चिथड़े उड़ते रहेंगे, राजनीति होती रहेगी ।

कचेहरी और अदालत को ले जाएं 'थानेदार'


माइक से बार-बार आवाज गूंज रही थी कि थानेदार सिंह की अम्मा कचेहरी देवी और बप्पा अदालत सिंह गायब हो गए हैं । थानेदार जहां कहीं भी हों, आकर पूछताछ केंद्र से कचेहरी और अदालत को ले जाएं । कचेहरी बार-बार बेहोश हो रही है, अदालत का बुरा हाल है । छोटकू के अम्मा भी मेले में भटक गई हैं, छोटकू के साथ । अम्मा ना तो अपना नाम बता रही है और अपने मरद का नाम भी नहीं बता रही हैं, हां यही कह रहीं है कि छोटकू के बप्पा कह कर गोहराओ, दौड़ते चले आएंगे । मुनव्वर की मुन्नी देवी भी बड़का मंदिर के पास भटक गई हैं, रो रहीं हैं, किसी ने खोआ-पाया दफ्तर तक पहुंचा दिया है । मुन्नी देवी को मुनव्वर ले जाओ, इन्हें बेहोश होने वाला दौरा पड़ रहा है । यह सीन है एक मेले की, जहां मैं भी पहुंचा हुआ था....खोया-पाया दफ्तर के सामने अजब-गजब एनाऊंसमैंट सुन कर प्रसन्न हो रहा था । इस अजब-गजब के आगे राजू भैया श्रीवास्तव की मसखरी फेल हो रही थी । .... तभी हटो-हटो....बड़ी-बड़ी मूंछों पर हाथ फेरते हुए एक भारी-भरकम इंसान भीड़ को चीरते हुए चिल्ला रहा था... हाय कचेहरी मैया तू कहां चली गइव रहा । अदालत बप्पा भी तोहरे साथे ही हैं । बुढऊ से कहिन रहा कि टैंट में रहौ, पर मानिन नाहीं । अपनौं हेराय गे अऊर साथेम मैय्यक भी हेरवाय दिहिन ।सगरौ मजा फ्यूज कइ दिहिन । अरे थानेदार भैया का भवा । काहे परेशान हौ, मैया और बप्पा मिल गइन । अब का दिक्कत है॥चलौ मेलवम थोरय घूम आवा जाए । का खाक चले बड़कऊ तीन घंटा तो खोजइम लगाइ दीन, अब का होई, अब तौ चलेन का टाइम होइ गवा है भैया । छोटकू के अम्मा छटपटाइ रहीं हैं, अब तक छोटकू के बप्पा नाहीं आए । छोटकू पछाड़े मार कई रोवत बाटय । छोटकू के अम्मा फिर से एनाऊंसमैंट वाले से छोटकू के बप्पा को पुकारे के लिए कहती है । एनाऊसमैंट करने वाला कहता है, का माई बार-बार पुकार रहिन है, ना तौ तू आपन नमवा बतावत हिव और ना ही छोटकू के बप्पा कय । तभी मुन्नी देवी चिल्ला पड़ती है ... अरे वह जात हैं मुनव्वर, हे चिल्लम का बप्पा, हम यहां हन । मुन्नवर बोला, हाथ पकर कइ चलइ कहा रहा, हाथ काहै छोडि दिहिस रहा । हम तो हाथय पकड़ कर रखेन रहा ... लेकिन तुमही गायब होइ गइव तो हम का करी । हाथ देखन तो कोही अऊर कैय रहा ? मेरी ट्रेन छूटने में अभी एक घंटे का समय था, स्टेशन जाते-जाते आधे घंटे लग जाते । मैंने आधा घंटा रह कर छोटकऊ के बप्पा की एंट्री का इंतजार करना चाह रहा था । हालांकि इस बीच कई और अजब-गजब नामों का उच्चारण हो रहा था । गायब होने की सूची में कई नाम शामिल हो चुके थे । लेकिन मुझे कचेहरी, अदालत, छोटकऊ के अम्मा (मम्मी)और मुन्नवर की मुन्नी में था । हालांकि कचेहरी और अदालत को थानेदार ले जा चुका था, मुन्नी भी अपने मरद मुनव्वर के साथ जा चुकी थी । लेकिन छोटकऊ और उसकी अम्मा में मेरी दिलचस्पी बनी हुई थी...लेकिन छोटकऊ के बप्पा (डैड) अभी तक खोया-पाया सैंटर नहीं आए थे, इस बीच मेरे दोस्त ने कहा,चलो टऒेन छूट जाएगी ।

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