दबंगई कायम है ...


हरियाणा और उत्तर प्रदेश में न केवल दलितों का शोषण हो रहा है, बल्कि दबंग सवर्णों द्वारा उनकी बहु- बेटियों पर फिकरे कसे जाते हैं। आपत्तिजनक टिप्पणी होती है। ताजा मिशाल हरियाणा के हिसार का है। जहाँ दलितों की बस्ती जलाने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। तनाव बढ़ता जा रहा है। दलितों ने इस कांड में जान गंवाने वाले बाप-बेटी के अंतिम संस्कार से इनकार कर दिया है। उनकी मांग है कि पहले तमाम आरोपियों को गिरफ्तार किया जाए। बुधवार को मिर्चपुर गांव में दबंग सवर्णों ने दलितों के करीब 30 घरों को फूंक दिया। तनाव के चलते तमाम दलित परिवार गांव छोड़कर भाग रहे हैं।

दलितों का कहना है कि सुबह दबंग परिवारों के कुछ लड़कों ने उधर से गुजरते हुए आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। दलितों ने इसका विरोध किया था और हल्की-फुल्की झड़प भी हो गई थी। बाद में दबंगों के ये लड़के बड़ी तादाद में वापस आए और दलित बस्ती पर हमला बोल दिया। दबंगों ने करीब 30 घरों को आग के हवाले कर दिया। 18 साल की एक विकलांग लड़की सुमन जलते हुए घर से निकल नहीं पाई। उसके 70 साल के पिता ताराचंद ने उसे बचाने की कोशिश की पर दोनों ही इस बुरी तरह झुलस गए कि जान नहीं बच सकी।

इस घटना के बाद दलित बेहद हताश और गुस्से में हैं। उन्होंने दबंगों के इरादों के बारे में समय रहते पुलिस को सूचना भी दे दी थी, लेकिन कुछ नहीं हुआ। जाहिर है, कानून के राज की बात उनके लिए बेमानी हो चुकी है। कई डरे हुए दलित परिवार गांव छोड़कर जा रहे हैं। लेकिन दलितों का कहना है कि असल बेगुनाहों को पुलिस बचा रही है। उन्होंने हिसार के जनरल अस्पताल में मौजूद सुमन और ताराचंद के शव लेने से इंकार कर दिया है।


दोस्ती मरते दम तक निभाएंगे.....


खुदा से क्या मांगू तेरे वास्ते
सदा खुशियों से भरे हों तेरे रास्ते
हंसी तेरे चेहरे पे रहे इस तरह
खुशबू फूल का साथ निभाती है जिस तरह
सुख इतना मिले की तू दुःख को तरसे
पैसा शोहरत इज्ज़त रात दिन बरसे
आसमा हों या ज़मीन हर तरफ तेरा नाम हों
महकती हुई सुबह और लहलहाती शाम हो
तेरी कोशिश को कामयाबी की आदत हो जाये
सारा जग थम जाये तू जब भी गए
कभी कोई परेशानी तुझे न सताए
रात के अँधेरे में भी तू सदा चमचमाए
दुआ ये मेरी कुबूल हो जाये
खुशियाँ तेरे दर से न जाये
इक छोटी सी अर्जी है मान लेना
हम भी तेरे दोस्त हैं ये जान लेना
खुशियों में चाहे हम याद आए न आए
पर जब भी ज़रूरत पड़े हमारा नाम लेना
इस जहाँ में होंगे तो ज़रूर आएंगे
दोस्ती मरते दम तक निभाएंगे.....
एक बिछड़े दोस्त के लिए...

गोंडा की राजनीति में पंडितों को मरना और दलितों का शोषण ही लिखा है ....


पहले उ.प्र. के मंत्री रहे घनश्याम शुक्ला की हत्या, फिर राजनीति से छोटे स्तर पर जुड़े पंडितों की हत्या और अब एक और पंडित की भरी सभा में गोली मारकर हत्या. यह आग सालों से जल रही है.... गोंडा में पंडित और ठाकुर आपस में एक दुसरे की हत्या कर या करवा कर राजनीति की सीढ़ी चढ़ने का खेल, खेल रही है .... खासकर गोंडा में पंडित बनाम ठाकुर लड़ रहे है, पिस रहे हैं दलित. इसमे नुक्सान पंडितों क हो रहा है ... दलितों का शोषण किया जा रहा है .... यह लड़ाई कब ख़तम होगी, कुछ कहा नहीं जा सकता. इसी लड़ाई के कारण गोंडा आज भी कई साल पीछे है, जबकि पडोसी जिले कहीं ज्यादा विकसित हो चुके हैं ...
खबर यह है की ......
यूपी के गोंडा में अंबेडकर जयंती समारोह के अवसर आयोजित हो रही एक रैली के दौरान बहुजन समाज पार्टी के नेता की हत्या कर दी गई है। नेता का नाम हनुमान शरण शुक्ला है। घटना के समय वह मंच पर मौजूद थे।
केन्द्र सरकार की खिलाफत में पूरे जिले से जुटे बसपाइयों को बलिया से आए मुख्य अतिथि एवं जोनल कोआर्डीनेटर छट्ठ राम सम्बोधित कर रहे थे। तभी मंच की दाहिनी ओर से एक युवक दबे पांव आया और एक किनारे बैठे पार्टी नेता और जिला पंचायत सदस्य मंजू देवी शुक्ला के पति हनुमानशरण शुक्ल के सिर में सटाकर बारह बोर के तमंचे से एक गोली उतार दी। हत्यारा मौके से फरार हो गया। उन्हें तुरंत जिला अस्पताल पहुँचाया गया जहाँ डॉक्टरों ने बसपा नेता को मृत घोषित कर दिया।

अंधेर नगरी, चौपट राजा ...कबड्डी ...कबड्डी ...कबड्डी ...


पंजाब में कबड्डी चल रही है या, नौटंकी .....
दम तोडती हाकी की नर्सरी के लिए सरकार के पास देने को धेला नहीं है, लेकिन कबड्डी के लिए सरकारी खजाना खोल दिया है ....लोगों को बिजली-पानी ढंग से नहीं मिल रहा है ...पंजाब सरकार को केंद्र सरकार को देने के लिए के शेयर नहीं है, जिससे कई केंद्रीय फंड लेप्स हो गया है ....
इसे आप मर्जी जो कहें, हम इसे अंधेर नगरी, चौपट राजा कहेंगे ...
पंजाब बिजली संकट से जूझने लगा है । लेकिन हुकमरान कबड्डी खेलने और देखने में व्यस्त हैं।
तो सारे बोलो...कबड्डी....कबड्डी....कबड्डी.....कबड्डी.....कबड्डी......कबड्डी....कबड्डी..........कबड्डी....कबड्डी..

गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा पर हंगामा क्यों है बरपा



पहली अप्रैल से देश भर में लागू हुए शिक्षा अधिकार कानून को लेकर दिल्ली के पब्लिक स्कूलों समेत कई बड़े शहरों में स्कूल खोल कर धनकुबेर बने लोगों ने घोर आपत्ति जताई है. स्कूल के जरिये धनपति बने शिक्षा माफिया टाइप के लोगों को सरकार का आदेश ख़राब लग रहा है . यह बड़ी हैरानीजनक बात है . सरकार को शिक्षा के साथ - साथ स्वस्थ्य अधिकार क़ानून भी बनाना चाहिए. सभी को शिक्षा-स्वस्थ्य मौलिक अधिकार होना चाहिए. स्वस्थ्य-शिक्षा के खर्चे आम लोगों के विकास में सबसे बड़ी बाधा है. सरकारी जमीन पर बिना कोई टैक्स दिए स्कूल चलने वाले परबन्धन की फीस हर साल बढ़ जाती है, लेकिन जब गरीब के बच्चों को २५ फीसदी मुफ्त में पढ़ाने का क़ानून पास किया जाता है तो मानने से इंकार कर दिया जाता है. भारत में बेहतर शिक्षा अमीरों के घर तक सिमित होकर रह गयी. क्या गरीब बच्चों को बेहतर शिक्षा नहीं मिलनेचाहिए?
इस क़ानून को लेकर सबसे ज्यादा दिल्ली में हो हल्ला मचा है .. आखिर क्यों?
दिल्ली स्टेट पब्लिक स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन को शिक्षा की दुकानदारी पर क़ानून बर्दास्त नहीं है. दोनों हाथों से पैसे बटोर रहे इन लोगों को क़ानून से डर सताने लगा है की कहीं इनकी दुकानदारी चौपट न हो जाये. इनकी सीनाजोरी देखो..कहते हैं की शिक्षा अधिकार कानून को वह अपने स्कूल में लागू नहीं करेंगे। तर्क यह है की इस कानून में दिए गए प्रावधान हमारी शिक्षा के स्तर को दोयम दर्जे का बनाएंगे. जनाब शिक्षा स्तर ठीक रहेगा, दिक्कत इनकी जेब पर है. एक अप्रैल से केंद्र सरकार द्वारा 6 से 14 साल के हर बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए बनाया गया ऐतिहासिक शिक्षा का अधिकार कानून लागू कर दिया है. बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार एक्ट-2009 की वजह से यह संभव हुआ है।
मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिबल ने कड़े शब्दों में कहा है कि सभी निजी और अल्पसंख्यक स्कूलों को अपने यहां 25 फीसदी सीट गरीब बच्चों के लिए आरक्षित करनी होगी। जो भी इसका उल्लंघन करेगा, उसे दंडित किया जाएगा। एक अंग्रेजी न्यूज चैनल को दिए साक्षात्कार में सिबल ने कहा कि वर्ष 2011 से सभी स्कूलों को क्लास एक से 25 फीसदी सीट गरीब बच्चों के लिए आरक्षित करनी पड़ेगी। इसके विरोध में जाने वालों को दंड के लिए तैयार रहना होगा, क्योंकि यह अब कानून है।

देश का संबोधित किया प्रधानमंत्री ने
इस कानून के लागू होने के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राष्ट्र के नाम संदेश देते हुए शिक्षा के अधिकार और उसकी महत्ता को उजागर किया है। ये पहला मौका था जब आजाद भारत में प्रधानमंत्री ने किसी कानून को लेकर देश को संबोधित किया।
मनमोहन सिंह ने राष्ट्र के नाम अपने संदेश में कहा है कि शिक्षा के अधिकार के लिए पारित कानून बच्चों के लिए समर्पित है। बच्चों को शिक्षा दी जाना न सिर्फ राज्य सरकार बल्कि परिवार की भी जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि बच्चों को ऐसे मूल्य दिए जाने चाहिए जो उन्हें एक जिम्मेदार और सक्रिय नागरिक बनाए। ताकि वे भारत के विकास में सहयोगी बनें।
संदेश में पीएम मनमोहन सिंह ने राज्य सरकारों से इसमें सहयोग की मांग की है। पीएम का यह राष्ट्र के नाम संदेश दूरदर्शन पर प्रसारित किया गया। उन्होंने कहा कि पैसे की कमी से इसमें कोई कमी नहीं आने दी जाएगी। माना जा रहा है कि खुद मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने प्रधानमंत्री से देश को संबोधित करने का आग्रह किया था।

क्या है इस कानून की खासियत
- इस कानून की सबसे बड़ी खासियत यह है कि अब सरकार के लिए उन बच्चों को शिक्षित करना जरूरी हो जाएगा जो 6-14 के आयु वर्ग में आते हैं।
- यह कानून स्कूलों में शिक्षक और छात्रों के अनुपात को सुधारने की बात करता है। मसलन अभी कई स्कूलों में सौ-सौ बच्चों पर एक ही शिक्षक हैं। लेकिन इस कानून में प्रावधन है कि एक शिक्षक पर 40 से अधिक छात्र नहीं होंगे। हालांकि यह कोठारी आयोग की अनुशंसा 1:30 से कम है।
- इस कानून के अनुसार राज्य सरकारों को बच्चों की आवश्यकता का ध्यान रखते हुए लाइब्रेरी, क्लासरुम, खेल का मैदान और अन्य जरूरी चीज उपलब्ध कराना होगा।
- 15 लाख नए शिक्षकों की भर्ती, जिसे एक अक्टूबर तक ट्रेन करना जरूरी है।
- स्कूल में प्रवेश के लिए मैनेजमेंट बर्थ सर्टिफिकेट फिर ट्रासंफर सर्टिफिकेट आधार पर प्रवेश से मना नहीं कर सकता।
- सत्र के दौरान कभी भी प्रवेश।
- निजी स्कूल में 25 फीसदी सीट गरीब बच्चों के लिए।

क्या हैं इस कानून की खामियां
- इस कानून की सबसे बड़ी खामी यह है कि इसमें 0-6 आयुवर्ग और 14-18 के आयुवर्ग के बीच के बच्चों की बात नहीं कई गई है। जबकि संविधान के अनुछेच्द 45 में साफ शब्दों में कहा गया है कि संविधान के लागू होने के दस साल के अंदर सरकार 0-14 वर्ग के आयुवर्ग के बच्चों को अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा देगी। हालांकि यह आज तक नहीं हो पाया।
- अंतराष्ट्रीय बाल अधिकार समझौते के अनुसार 18 साल तक की उम्र तक के बच्चों को बच्चा माना गया है। जिसे 142 देशों ने स्वीकार किया है। भारत भी उनमें से एक है। ऐसे में 14-18 आयुवर्ग के बच्चों को शिक्षा की बात इस कानून में नहीं कई गई है।
- इस कानून को केंद्र सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि में से एक बताया जा रहा है। जबकि संविधान में पहले से ही यह प्रावधान है और 2002 में हुए 86वें संशोधन में भी शिक्षा के अधिकार की बात कई गई थी। लेकिन सरकार अब जाकर यह कानून ला रही है। इन आठ सालों में बच्चों की पूरी एक पीढ़ी इस अधिकार से बाहर हो गई।

इतिहास
संविधान के अनुछेच्द 45 में 0-14 उम्र के बच्चों को शिक्षा देने की बात कही गई।
2002 में 86 वें संशोधन में शिक्षा के अधिकार की बात कही गई।
2009 में शिक्षा का अधिकार बिल पास हो सका, एक अप्रैल 2010 में इसे पूरे देश में लागू कर दिया जाएगा।

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