'समय से मुठभेड़' करता चला गया हमारा नायक


जनकवि अदम गोंडवी को समर्पित .....

जाते जाते इस बरस ने अदम गोंडवी को भी हमसे छीन लिया. गरीबी के कारण समुचित इलाज न करा पाने वाले अदम गोंडवी ने आज अंतिम सांस ली. उनका लीवर डैमेज था और लखनऊ के एसजीपीजीआई में इलाज चल रहा था. अदम का जन्म 22 अक्तूबर 1947 को हुआ. उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के आटा परसपुर गांव के रहने वाले अदम गोंडवी के सिर्फ दो संग्रह प्रकाशित हुए लेकिन इन्हीं दो संग्रहों की बदौलत अदम देश के जाने-माने जनपक्षधर कवि के रूप में प्रतिष्ठित हो गए.

इन कविता संग्रहों के नाम हैं- 'धरती की सतह पर' और 'समय से मुठभेड़'. अदम गोंडवी की जनवादी कविताएं पूरे हिंदी प्रदेश में लोकप्रिय रही हैं. “काजू भुने प्लेट में, व्हिस्की गिलास में, राम राज उतरा विधायक निवास में” और “जो उलझ कर रह गई फाइलों के जाल में, गांव तक वो रोशनी आयेगी कितने साल में” जैसी कविताओं के लिये मशहूर अदम गोंडवी और उनकी कविताओं पर कई छात्रों ने पीएचडी की थी.

दम गोंडवी का लीवर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुका था. किडनी भी ठीक से काम नहीं कर रही थी. पेट फूला हुआ था. मुँह से पानी का घूँट भी ले पाना उनके लिए संभव नहीं रह गया था. खून में हीमोग्लोबीन का स्तर लगातार नीचे जा रहा था. नीम बेहोशी की गंभीर हालत में अदम गोंडवी को गोंडा से लखनऊ के पीजीआई में लाया गया था. कई घंटे तक वे भर्ती हुए बिना इलाज के पड़े रहे. इससे उनकी हालत और भी खराब होती गई. बाद में पीजीआई की इमरजेन्सी में भर्ती हुए. सबसे बड़ी दिक्कत पैसे की रही.

परिवार के पास इलाज के लिए पैसे नहीं थे. सबसे पहले मुलायम सिंह यादव का सहयोग सामने आया. उन्होंने पचास हजार का सहयोग दिया. एडीएम, मनकापुर ने दस हजार का सहयोग दिया. गोंडा में जिस प्राइवेट नर्सिंग होम में उनका इलाज चला, वहाँ के डाक्टर राजेश कुमार पांडेय ने बारह हजार का सहयोग दिया. अदम गोंडवी के इलाज के लिए सहयोग जुटाने के मकसद से कई संगठन सक्रिय हो गये थे. जसम, प्रलेस, जलेस, कलम, आवाज, ज्ञान विज्ञान समिति आदि संगठनों की ओर से राज्यपाल व मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा गया तथा उनसे माँग की गई कि अदम गोंडवी के इलाज का सारा खर्च प्रदेश सरकार उठाये.

ऐसा ही ज्ञापन उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान और भाषा संस्थान को भी भेजा गया. लेखक संगठनों का कहना है कि अदम गोंडवी ने सारी जिंदगी जनता की कविताएँ लिखीं, जन संघर्षों को वाणी दी. ये हमारे समाज और प्रदेश की धरोहर हैं. इनका जीवन बचाना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है. वह आगे आये. रचना व साहित्य के लिए बनी सरकारी संस्थाओं का भी यही दायित्व है. पर इन अपीलों का कोई खास असर होता नहीं दिखा. अदम की हालत लगातार बिगड़ती गई और उन्होंने आज दम तोड़ दिया.

[B]अदम की कुछ ग़ज़लें यूं हैं-- [/B]

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जो उलझ कर रह गयी है फाइलों के जाल में
गाँव तक वह रौशनी आएगी कितने साल में

बूढ़ा बरगद साक्षी है किस तरह से खो गयी
राम सुधि की झौपड़ी सरपंच की चौपाल में

खेत जो सीलिंग के थे सब चक में शामिल हो गए
हम को पट्टे की सनद मिलती भी है तो ताल में

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ग़र चंद तवारीखी तहरीर बदल दोगे
क्या इनसे किसी कौम की तक़दीर बदल दोगे

जायस से वो हिन्दी की दरिया जो बह के आई
मोड़ोगे उसकी धारा या नीर बदल दोगे ?

जो अक्स उभरता है रसख़ान की नज्मों में
क्या कृष्ण की वो मोहक तस्वीर बदल दोगे ?

तारीख़ बताती है तुम भी तो लुटेरे हो
क्या द्रविड़ों से छीनी जागीर बदल दोगे ?

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हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये
अपनी कुरसी के लिए जज्बात को मत छेड़िये

हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िये

ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीं ; जुम्मन का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेड़िये

हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गये सब ,क़ौम की औक़ात को मत छेड़िये

छेड़िये इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के ख़िलाफ़
दोस्त, मेरे मजहबी नग्मात को मत छेड़िये

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तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है

उधर जम्हूरियत का ढोल पीते जा रहे हैं वो
इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है, नवाबी है

लगी है होड़ - सी देखो अमीरी औ गरीबी में
ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी खराबी है

तुम्हारी मेज़ चांदी की तुम्हारे जाम सोने के
यहाँ जुम्मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है
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मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको / अदम गोंडवी




आइए महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप को
मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको

जिस गली में भुखमरी की यातना से ऊब कर
मर गई फुलिया बिचारी कि कुएँ में डूब कर

है सधी सिर पर बिनौली कंडियों की टोकरी
आ रही है सामने से हरखुआ की छोकरी

चल रही है छंद के आयाम को देती दिशा
मैं इसे कहता हूं सरजूपार की मोनालिसा

कैसी यह भयभीत है हिरनी-सी घबराई हुई
लग रही जैसे कली बेला की कुम्हलाई हुई

कल को यह वाचाल थी पर आज कैसी मौन है
जानते हो इसकी ख़ामोशी का कारण कौन है

थे यही सावन के दिन हरखू गया था हाट को
सो रही बूढ़ी ओसारे में बिछाए खाट को

डूबती सूरज की किरनें खेलती थीं रेत से
घास का गट्ठर लिए वह आ रही थी खेत से

आ रही थी वह चली खोई हुई जज्बात में
क्या पता उसको कि कोई भेड़िया है घात में

होनी से बेखबर कृष्ना बेख़बर राहों में थी
मोड़ पर घूमी तो देखा अजनबी बाहों में थी

चीख़ निकली भी तो होठों में ही घुट कर रह गई
छटपटाई पहले फिर ढीली पड़ी फिर ढह गई

दिन तो सरजू के कछारों में था कब का ढल गया
वासना की आग में कौमार्य उसका जल गया

और उस दिन ये हवेली हँस रही थी मौज़ में
होश में आई तो कृष्ना थी पिता की गोद में

जुड़ गई थी भीड़ जिसमें जोर था सैलाब था
जो भी था अपनी सुनाने के लिए बेताब था

बढ़ के मंगल ने कहा काका तू कैसे मौन है
पूछ तो बेटी से आख़िर वो दरिंदा कौन है

कोई हो संघर्ष से हम पाँव मोड़ेंगे नहीं
कच्चा खा जाएँगे ज़िन्दा उनको छोडेंगे नहीं

कैसे हो सकता है होनी कह के हम टाला करें
और ये दुश्मन बहू-बेटी से मुँह काला करें

बोला कृष्ना से बहन सो जा मेरे अनुरोध से
बच नहीं सकता है वो पापी मेरे प्रतिशोध से

पड़ गई इसकी भनक थी ठाकुरों के कान में
वे इकट्ठे हो गए थे सरचंप के दालान में

दृष्टि जिसकी है जमी भाले की लम्बी नोक पर
देखिए सुखराज सिंग बोले हैं खैनी ठोंक कर

क्या कहें सरपंच भाई क्या ज़माना आ गया
कल तलक जो पाँव के नीचे था रुतबा पा गया

कहती है सरकार कि आपस मिलजुल कर रहो
सुअर के बच्चों को अब कोरी नहीं हरिजन कहो

देखिए ना यह जो कृष्ना है चमारो के यहाँ
पड़ गया है सीप का मोती गँवारों के यहाँ

जैसे बरसाती नदी अल्हड़ नशे में चूर है
हाथ न पुट्ठे पे रखने देती है मगरूर है

भेजता भी है नहीं ससुराल इसको हरखुआ
फिर कोई बाँहों में इसको भींच ले तो क्या हुआ

आज सरजू पार अपने श्याम से टकरा गई
जाने-अनजाने वो लज्जत ज़िंदगी की पा गई

वो तो मंगल देखता था बात आगे बढ़ गई
वरना वह मरदूद इन बातों को कहने से रही

जानते हैं आप मंगल एक ही मक़्क़ार है
हरखू उसकी शह पे थाने जाने को तैयार है

कल सुबह गरदन अगर नपती है बेटे-बाप की
गाँव की गलियों में क्या इज़्ज़त रहे्गी आपकी

बात का लहजा था ऐसा ताव सबको आ गया
हाथ मूँछों पर गए माहौल भी सन्ना गया था

क्षणिक आवेश जिसमें हर युवा तैमूर था
हाँ, मगर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था

रात जो आया न अब तूफ़ान वह पुर ज़ोर था
भोर होते ही वहाँ का दृश्य बिलकुल और था

सिर पे टोपी बेंत की लाठी संभाले हाथ में
एक दर्जन थे सिपाही ठाकुरों के साथ में

घेरकर बस्ती कहा हलके के थानेदार ने -
"जिसका मंगल नाम हो वह व्यक्ति आए सामने"

निकला मंगल झोपड़ी का पल्ला थोड़ा खोलकर
एक सिपाही ने तभी लाठी चलाई दौड़ कर

गिर पड़ा मंगल तो माथा बूट से टकरा गया
सुन पड़ा फिर "माल वो चोरी का तूने क्या किया"

"कैसी चोरी, माल कैसा" उसने जैसे ही कहा
एक लाठी फिर पड़ी बस होश फिर जाता रहा

होश खोकर वह पड़ा था झोपड़ी के द्वार पर
ठाकुरों से फिर दरोगा ने कहा ललकार कर -

"मेरा मुँह क्या देखते हो ! इसके मुँह में थूक दो
आग लाओ और इसकी झोपड़ी भी फूँक दो"

और फिर प्रतिशोध की आंधी वहाँ चलने लगी
बेसहारा निर्बलों की झोपड़ी जलने लगी

दुधमुँहा बच्चा व बुड्ढा जो वहाँ खेड़े में था
वह अभागा दीन हिंसक भीड़ के घेरे में था

घर को जलते देखकर वे होश को खोने लगे
कुछ तो मन ही मन मगर कुछ जोर से रोने लगे

"कह दो इन कुत्तों के पिल्लों से कि इतराएँ नहीं
हुक्म जब तक मैं न दूँ कोई कहीं जाए नहीं"

यह दरोगा जी थे मुँह से शब्द झरते फूल से
आ रहे थे ठेलते लोगों को अपने रूल से

फिर दहाड़े, "इनको डंडों से सुधारा जाएगा
ठाकुरों से जो भी टकराया वो मारा जाएगा

इक सिपाही ने कहा, "साइकिल किधर को मोड़ दें
होश में आया नहीं मंगल कहो तो छोड़ दें"

बोला थानेदार, "मुर्गे की तरह मत बांग दो
होश में आया नहीं तो लाठियों पर टांग लो

ये समझते हैं कि ठाकुर से उलझना खेल है
ऐसे पाजी का ठिकाना घर नहीं है, जेल है"

पूछते रहते हैं मुझसे लोग अकसर यह सवाल
"कैसा है कहिए न सरजू पार की कृष्ना का हाल"

उनकी उत्सुकता को शहरी नग्नता के ज्वार को
सड़ रहे जनतंत्र के मक्कार पैरोकार को

धर्म संस्कृति और नैतिकता के ठेकेदार को
प्रांत के मंत्रीगणों को केंद्र की सरकार को

मैं निमंत्रण दे रहा हूँ- आएँ मेरे गाँव में
तट पे नदियों के घनी अमराइयों की छाँव में

गाँव जिसमें आज पांचाली उघाड़ी जा रही
या अहिंसा की जहाँ पर नथ उतारी जा रही

हैं तरसते कितने ही मंगल लंगोटी के लिए
बेचती है जिस्म कितनी कृष्ना रोटी के लिए !

लापता बेनी को ढूढने वालों को गोंडा के मतदाता देंगे इनाम


महज सड़कों पे गड्ढे हैं न बिजली है न पानी है ...
हमारे शहर गोंडा कि फिजा कितनी सुहानी है ॥
शहर जाये भाड़ में इससे उन्हें मतलब नहीं ....
नेताओं कि ये अदा, ये बांकपन ये लंतरानी देखिये॥

अदम गोंडवी कि यह कविता गोंडा की असली तस्वीर आज भी उसी शिद्दत से पेश करती है, जो १५ साल पहले थी। निजाम बदले, नेता बदले, पर गोंडा की तस्वीर नहीं बदली। गोंडा के सांसद बेनी वर्मा अब तक के सबसे भगोड़े नेता साबित हुए हैं। बाराबंकी से निकल कर दिल्ली तक पहुँचने वाले बेनी अख़बारों में स्टील और सेल को मजबूत करने में जुटे हैं। दिल्ली और लखनऊ में पत्रकारों को इसलिए दावत दे रहे हैं की उनकी ख़बरें छपती रहे। दावत देने से ठीक पहले अख़बारों में एक पेज का विज्ञापन देना नहीं भूलते। अख़बारों में सेल का अरबों रुपया ख़राब करने वाले बेनी बाबू अपने लोकसभा गोंडा के विकास पर एक पैसा खर्च नहीं कर रहे हैं। गोंडा में तो कई जगह बोर्ड लगा कर बेनी को गायब बताया गया है। यहाँ तक की गोंडा के कुछ इलाको में बेनी पर इनाम रखा गया है। बेनी को ढूँढने वालों को पांच से दस हजार का इनाम। तो बेनी को ढूँढने में लग जावो।
कांग्रेस के राजकुमार राहुल गाँधी से यही विनती है की बेनी को दिल्ली से गोंडा भेजो। कांग्रेस की तो लुटिया बेनी जैसे लापता सांसद डुबाने में लगे है। -- गोंडा से एक मतदाता
नोट - बेनी की फोटो भी भेज रहा हूँ, ताकि ढूँढने में आसानी हो सके..

सबसे महंगा अपना पेट्रोल ... बाप रे बाप........


भारत में पेट्रोल कीमते आपकी जेब जला रही हैं तो यूं ही नहीं। सच यह है कि दुनिया के दूसरे तमाम देशों के नागरिकों के मुकाबले हिंदुस्तानियों को सबसे ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं पेट्रोल पर। मौजूदा एक्सचेंज रेट पर आधारित तमाम देशों में रिटेल पेट्रोल कीमतों के आंकड़े बताते हैं कि भारत सबसे महंगे पेट्रोल वाले देशों में है। अगर विभिन्न देशों के परचेजिंग पावर के अंतर को ध्यान में रखते हुए (यानी पीपीपी मेथड से) विचार करें तो भारत में पेट्रोल की दर सबसे महंगी है (सुदूर के एकाध छोटे-छोटे देश ही इसका अपवाद हैं)। इस मेथड से भारत में पेट्रोल कीमतें अमेरिका से 5 गुना तो रूस और जापान से तीन गुना ज्यादा बैठती हैं।

पेट्रोल कीमतों का भारतीय मुद्रा में बदलते हुए एक सामान्य तुलना भी की जाए तो भारती में पेट्रोल की दर 98 देशों से महंगी बैठती है। इस सामान्य तुलना में ओपेक (तेल निर्यातक देशों का संगठन) के देशों में तो तेल सस्ता है ही (जैसे वेनेजुएला में 1.14 रु प्रति लीटर और ईरान में 4.8 रु प्रति लीटर) अमेरिका और इंडोनेशिया (जहां पेट्रोल पर टैक्स कम है) जैसे देशों में भी पेट्रोल काफी सस्ता है। उदाहरण के लिए अमेरिका में यह 42.82 रुपए प्रति लीटर पड़ता है। मगर. इस लिहाज से यूरोपीय समुदाय के देश भारत से आगे हैं जहां पेट्रोल काफी महंगा दिखता है।

फिर भी, इस तुलना को सही नहीं कहा जा सकता। वजह यह है कि परचेजिंग पावर के लिहाज से भारत इन देशों के मुकाबले कहीं नहीं ठहरता। अगर परचेजिंग पावर के इस फर्क को ध्यान में रखते हुए (यानी पीपीपी मेथड से) तुलना की जाए तो काफी हद तक सही स्थिति सामने आ जाती है। और यह सही स्थिति चौंकाने वाली है।

इस मेथड से भारत में पेट्रोल की रिटेल कीमत (डॉलर में) 3.95 डॉलर प्रति लीटर बैठती है, जबकि चीन में 1.95 डॉलर, ब्रिटेन में 1.85 डॉलर, ब्राजील 1.7 डॉलर, जापान में 1.28 डॉलर, रूस में 1.26 डॉलर, अमेरिका में 0.76 डॉलर, सऊदी अरब में 0.23 डॉलर और वेनेजुएला में 0.03 डॉलर बैठती है। साफ है कि भारत में पेट्रोल अमेरिका के मुकाबले पांच गुना, चीन और ब्रिटेन के मुकाबले दोगुना तथा जापान और रूस के मुकाबले तीन गुना से भी ज्यादा है।

मैं अन्ना हजारे हूं..




मैं अन्ना हजारे हूं। किशन बाबूराव हजारे। भारत के उन चंद नेताओं में से एक हूं, जो हमेशा सफेद खादी के कपड़े पहनते हैं और सिर पर गाँधी टोपी पहनते हैं. मेरा जन्म 15 जून, 1938 को महाराष्ट्र के भिंगारी गांव के एक किसान परिवार में हुआ। पिता क नाम बाबूराव हज़ारे और मां का नाम लक्ष्मीबाई हजारे है। मैं छह भाई हूं। मेरा बहुत ग़रीबी में गुज़रा।

परिवार की आर्थिक तंगी के चलते मैं मुंबई आ गया। मैंने यहा सातवीं तक पढ़ाई की। कठिन हालातों में परिवार को देख कर मैं परिवार का बोझ कुछ कम करने के लिए फूल बेचनेवाले की दुकान में 40 रूपए महीने की पगार पर काम किया.

वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद सरकार की युवाओं से सेना में शामिल होने की अपील पर मैं 1963 में सेना की मराठा रेजीमेंट में बतौर ड्राइवर भर्ती हो गया।

1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान मैं खेमकरण सीमा पर तैनात था। 12 नवंबर 1965 को चौकी पर पाकिस्तानी हवाई बमबारी में वहां तैनात सारे सैनिक मारे गए। इस घटना ने मेरी ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया। मेरे गांव में बिजली और पानी की ज़बरदस्त कमी थी। मैंन गांव वालों को नहर बनाने और गड्ढे खोदकर बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए प्रेरित किया और ख़ुद भी इसमें योगदान दिया। मेरे कहने पर गांव में जगह-जगह पेड़ लगाए गए. गांव में सौर ऊर्जा और गोबर गैस के जरिए बिजली की सप्लाई की गई. 1990 में 'पद्मश्री' और 1992 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। मुझे अहमदनगर ज़िले के गाँव रालेगाँव सिद्धि के विकास और वहां पानी की उपलब्धता बढ़ाने के लिए विभिन्न तरीक़ों का इस्तेमाल करने के लिए जाना जाता है।

घटना के 13 साल बाद मैं सेना से रिटायर हुआ लेकिन अपने जन्म स्थली भिंगारी गांव भी नहीं गया। मैं पास के रालेगांव सिद्धि में रहने लगा।1990 तक मेरी पहचान एक ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता के रूप हुई, जिसने अहमदनगर जिले के रालेगांव सिद्धि को अपनी कर्मभूमि बनाया और विकास की नई कहानी लिख दी।

मेरी राष्ट्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार के धुर विरोधी सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर पहचान नब्बे के दशक में बनी जब मैंने 1991 में 'भ्रष्टाचार विरोधी जनआंदोलन' की शुरूआत की।

महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा की सरकार के कुछ 'भ्रष्ट' मंत्रियों को हटाए जाने की मांग को लेकर भूख हड़ताल की। ये मंत्री थे- शशिकांत सुतर, महादेव शिवांकर और बबन घोलाप। मैंने उन पर आय से ज़्यादा संपत्ति रखने का आरोप लगाया था। सरकार ने मुझे मनाने की कोशिश की, लेकिन हारकर दो मंत्रियों सुतर और शिवांकर को हटाना ही पड़ा। घोलाप ने मेरे खिलाफ़ मानहानि का मुकदमा कर दिया।

2003 में मैं कांग्रेस और एनसीपी सरकार के कथित तौर पर चार भ्रष्ट मंत्रियों-सुरेश दादा जैन, नवाब मलिक, विजय कुमार गावित और पद्मसिंह पाटिल के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ दी और भूख हड़ताल पर बैठ गया। मेरा विरोध काम आया और सरकार को झुकना पड़ा। तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने इसके बाद एक जांच आयोग का गठन किया।

नवाब मलिक ने भी अपने पद से त्यागपत्र दे दिया. आयोग ने जब सुरेश जैन के ख़िलाफ़ आरोप तय किए तो उन्होंने भी इस्तीफा दे दिया.

1997 में मैंने सूचना के अधिकार क़ानून के समर्थन में मुहिम छेड़ी. आख़िरकार 2003 में महाराष्ट्र सरकार को इस क़ानून के एक मज़बूत और कड़े मसौदे को पास करना पड़ा। बाद में इसी आंदोलन ने राष्ट्रीय आंदोलन का रूप लिया और 2005 में संसद ने सूचना का अधिकार क़ानून पारित किया। कुछ राजनीतिज्ञों और विश्लेषकों की मानें, तो मैं अनशन का ग़लत इस्तेमाल कर राजनीतिक ब्लैकमेलिंग करता हूं। कई राजनीतिक विरोधियों ने मेरा इस्तेमाल किया है। कुछ विश्लेषक मुझे निरंकुश बताते हैं और कहते हैं कि उनके संगठन में लोकतंत्र का नामोनिशां नहीं है।

शुरू हो गई आजादी की दूसरी लड़ाई ...

अन्ना की हुंकार ..... देश की आजादी की दूसरी लड़ाई शुरू हो गयी है।

चलती रहे जिंदगी..!


चलती रहे जिंदगी..! यह दृश्य है श्रावस्ती जिले के कोतवाली भिनगा स्थित बेलभरिया गांव का। एक आग जिसने पूरी गृहस्थी राख कर दी। कपड़े-लत्ते, बर्तन-भाड़े, अनाज-पानी कुछ भी शेष न रहा। दूसरी पेट की आग जिससे तड़पते बच्चों को जिलाने के लिए अकुलाई मां ने दो ईंटें रख कर चूल्हा बनाया और फिर जलाई आग..जिंदगी की आग

अमीर बनाम गरीब भारत

मुंबई स्थित मुकेश अंबानी के करीब 1 अरब डॉलर कीमत वाले चर्चित घर एंतिला पर टाटा ने आश्चर्य जताया।उन्होंने कहा कि आखिर मुकेश अंबानी इतने महंगे घर में क्यों रहना चाहते हैं। टाटा समूह के चेयरमैन रतन टाटा ने लंदन स्थित समाचार पत्र टाइम्स को दिए साक्षात्कार में कहा, 'यह देखकर मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि कोई ऐसा क्यों करेगा (घर पर इतना पैसा क्यों खर्च करेगा)।

ऐसे ही कारणों से क्रांतियां होती हैं। जो लोग उस घर में रह रहे हैं उनको अपने आसपास देखना चाहिए और देखना चाहिए कि क्या वह कुछ अलग कर सकता है। यदि वह ऐसा नहीं कर सकता है तो यह काफी दुखद है क्योंकि भारत को ऐसे लोगों की जरूरत है जो अपनी संपत्ति का कुछ हिस्सा लोगों की कठिनाइयां दूर करने के लिए दे सकें।'ब्रिटेन की स्टील कंपनी कोरस और कार निर्माता कंपनी जगुआर लैंड रोवर (जेएलआर) को खरीदने वाले रतन टाटा ने कहा कि भारत में अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई से वह बहुत चिंतित हैं।

उन्होंने कहा कि हम इस आर्थिक असमानता को कम करने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं। अमीर शायद चाहते ही यही हैं कि गरीबी बनी रहे। हालांकि टाटा समूह ने अपने चेयरमैन के बयान का गलत अर्थ निकालने की बात कहकर अपना बचाव किया है।
भारत का एक बार से विभाजन हो रहा है, अमीर लोगों का भारत अलग बन रहा है। और गरीब भारत अलग। किसी के पास सिर छुपाने के लिए जगह नहीं है, तो अम्बानी जैसे लोग एक अरब डालर के बंगले में रहते हैं। एक डालर में पचास रुपये होता है। हमारी गणित थोड़ी कमजोर है। हम हिसाब में समय ख़राब नहीं करना चाहते हैं।
अम्बानी और टाटा दोनों माहिर हैं, अकूत संपत्ति के मालिक हैं। इन्हें देश के विभाजन को बचाने के बारे में सोचना होगा।

पाक में छिपे भारत के 50 मोस्ट वॉन्टेड

भारत ने पाकिस्तान में छिपे 50 वॉन्टेड भगोड़ों की लिस्ट जारी की है। लिस्ट में अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम , मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड और लश्कर - - तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद और खूंखार आतंकवादी जकी उर रहमान लखवी के नाम भी शामिल हैं।

हाफिज सईद का नाम इस सूची में सबसे ऊपर है। वह मुंबई हमलों सहित भारत में हुए अन्य आतंकी हमलों में शामिल रहा है।

इस सूची में जैश - - मोहम्मद के प्रमुख मौलाना मसूद अजहर का भी नाम है , जो 2001 में संसद पर हुए हमले का प्रमुख आरोपी है। सरकार ने 1999 में कंधार विमान अपहरण की घटना में बंधकों की रिहाई के बदले में अजहर को रिहा कर दिया था।

आइए आपको बताते हैं कौन-कौन हैं पाकिस्तान में छिपे वे 50 खूंखार आतंकी जिनको भारत को सरगर्मी से तलाश है।
हाफिज मोहम्मद सईद, साजिद मजीद, सैयह हाशिम अब्दुल रेहमान पाशा, मेजर इकबाल, इलियास कश्मीरी, राशिद अब्दुल्लाह, मेजर समीर अली, दाऊद इब्राहिम, मेमन इब्राहिम, छोटा शकील, मेनन अब्दुल रज्जाक, अनीस इब्राहिम, अनवर अहमद हाजी जमाल, मोहम्मद दोसा, जावेद चिकना, सलीम अब्दुल गाजी, रियाज खत्री, मुनफ हलारी, मोहम्मद सली मुजाहिद, खान बशीर अहमद, याकूब येड़ा खान, मोहम्मद मेनन, इरफान चौगुले, फिरोज राशिद खान, अली मूसा, सगीर अली शेख, आफताब बटकी
मौलाना मोहम्मद मसूद अजहर, सलाऊद्दीन, अजम चीमा, सय्यद जैबुद्दीन जाबी, इब्राहिम अतहर, अजहर यूसुफ, जहूर इब्राहिम मिस्त्री, अख्तर सईद, मोहम्मद शाकिर, रऊफ अब्दुल, अमानुल्लाह खान, सूफियां मुफ्ती, नचान अकमल, पठान याकूब खान, काम बशीर, लखबीर सिंह रोडे, परमजीत सिंह पम्मा, रंजीत सिंह, वाधवा सिंह, अबू हमजा, जकी उर रहमान लखवी, आमिर रजा खान
साभार - नभाटा

किसने क्या किया
हाफिज सईद
लश्कर-ए-तैयबा का बिग बॉस। भारत पर 26/11 हमले का मुख्य आरोपी।
इलियास कश्मीरी
अलकायदा की 313 ब्रिगेड का चीफ है। ओसामा की जगह अलकायदा का चीफ बन सकता है। 26/11 का प्लान उसी ने तैयार किया था। हेडली से भी उसका नाम जुड़ा। वह भारत पर दो और हमले की तैयारी कर रहा था।
सैयद सलाउद्दीन
हिजबुल मुजाहिद्दीन का सुप्रीम कमांडर। कश्मीर को लेकर भारत के खिलाफ जिहाद चलाता है।
दाऊद इब्राहिम
अंडरवर्ल्ड डॉन। मुंबई बम धमाकों में आरोपी। आईएसआई की सुरक्षा में कराची में रह रहा है।
मौलाना मसूद अजहर
जैश-ए-मोहम्मद का चीफ। 2001 में संसद पर हुए हमले ( 26/11 ) का प्रमुख आरोपी। सरकार ने 1999 में कंधार विमान अपहरण की घटना में बंधकों की रिहाई के बदले में अजहर को रिहा कर दिया था।
मेनन इब्राहिम
दाऊद इब्राहिम का बेहद करीबी। 1993 में मुंबई में हुए सीरियल ब्लास्ट में आरोपी।
अनीस इब्राहिम
दाऊद इब्राहिम का भाई। डी गैंग का खास मेंबर। खाड़ी के देशों में बिजनेस चलाता है। मुंबई बम धमाकों में आरोपी।
छोटा शकील
दाऊद का दायां हाथ। मुंबई हमलों में आरोपी। डी कंपनी की भारत में की गई कई संगीन वारदातों में वॉन्टेड।
मेनन अब्दुल रजाक
टाइगर मेनन के नाम से भी जाना जाता है। 1993 को मुंबई ब्लास्ट में आरडीएक्स का इंतजाम उसी ने किया था।
अबू हमजा
बेंगलुरु में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस पर हुए हमले में पहली बार नाम सामने आया। इसके बाद वह पाकिस्तान भाग गया। 26/11 हमले की साजिश रचने में भी वह शामिल था।
अब्दुल रहमान पाशा
पाशा पहले पाकिस्तानी सेना में था। इसके बाद वह लश्कर से जुड़ गया। हेडली मामले में वह मुख्य कॉर्डिनेटर के तौर पर जुड़ा था। हालांकि पाकिस्तान इस बात से इनकार करता है।
जकी-उर-रहमान लखवी
लश्कर का नंबर दो कमांडर। लखवी चाचा के तौर पर भी जाना जाता है। लखवी ने 26/11 हमले के लिए ट्रेनिंग और भर्ती का काम देखा था।

कुछ हमसे सीखो ....


121 करोड़ भारतीयों का भरोसा अब सच्चाई में बदलता नजर आ रहा है कि 21 वीं सदी भारत की होगी। दुनिया में आर्थिक महाशक्तिके रूप में उभर रहा हमारा देश ज्ञान-विज्ञान, टेक्नॉलॉजी में तो आगे है ही, अंतरराष्ट्रीय खेलों में भी शीर्ष पर चमक रहा है। यह विश्व विजय इस दिशा में सबसे प्रभावी और प्रेरक कदम है।

क्रिकेट और खेल से आगे का जहां काफी बड़ा है। टीम इंडिया ने कुछ ऐसे उदाहरण भी पेश किए, जो सिर्फ विश्व कप की कामयाबी तक सीमित नहीं हंै। इन्हें जिंदगी की सारी बाधाओं को जीतने में भी आजमाया जा सकता है, बशर्ते वैसा अनुशासन भी हो। यूं तो इस खेल के कई सबक हैं, लेकिन छह बेशकीमती बातें ये रहीं-

सर्वश्रेष्ठ पर निर्भर न रहो : डोंट डिपेंड ऑन द बेस्ट..

जो सर्वश्रेष्ठ ही हैं, सिर्फ उनके सहारे बात नहीं बनेगी। सबको अपना सर्वश्रेष्ठ देना होगा। शांति और धर्य के साथ। टीम में बेहतरीन कामयाबी का सीधा सूत्र है —डोंट डिपेंड ऑन द बेस्ट..जैसे : फाइनल में सचिन और सहवाग के जल्दी आउट होने के बाद गंभीर और कोहली जैसे युवा खिलाड़ियों ने टीम को संभालने की जिम्मेदारी बखूबी निभाई।

बढ़ो और बदल डालो.. गो एंड टर्नअराउंड..

मकसद हासिल करने का इसके सिवाए कोई दूसरा रास्ता नहीं। अपने कदमों पर पूरा-पक्का भरोसा और कुछ बेहतर कर दिखाने की जिद। आगे बढ़ा हुआ हर कदम अगले एक और कदम की प्रेरणा बनेगा। इसलिए मत भूलिए —गो एंड टर्नअराउंड..

जैसे : पूरे टूर्नामेंट में बहुत सफल न रहने के बाद भी महेंद्र सिंह धोनी ने नाजुक मौके पर महत्वपूर्ण पारी खेलकर खुद को साबित कर दिखाया।

कभी ना न कहो..

नकारात्मक होने से बात बिल्कुल नहीं बनेगी। उसे हर हाल में नकारना ही होगा। ताकि ऊर्जा का हर हिस्सा एक ही दिशा में लग सके। सिर्फ एक ही सूत्र चित्त का चरित्र बदल देगा -

—नेवर से नो..

जैसे खराब फार्म से जूझ रहे युवराज सिंह वल्र्ड कप से पहले क्रिकेट से संन्यास लेने की सोच रहे थे पर उन्होंने नकारात्मक सोच पर विजय पाई और हीरो बनकर उभरे।

खतरे भरे कदम उठाओ

बिना खतरे के कभी बड़े मकसद मिलते भी नहीं। लंबी दूरी नापने के लिए भरी-पूरी छलांग जरूरी है। खतरे उठाने की तैयारी जितनी होगी, मंजिल से दूरी उतनी ही कम होगी। सीधी बात है

—मेक डैंजरस मूव्स..

जैसे फाइनल मैच में आर. अश्विन की जगह श्रीसंत और पठान की जगह रैना को मौका देने और खुद को युवराज से पहले बैटिंग करने के धोनी के फैसले खतरों से भरे जरूर थे, लेकिन उन्हीं से नतीजा हासिल हुआ।

हर पल रणनीति बनाओ

बिना सोचे-विचारे आगे बढ़े कदम अंधेरी दिशा में ही होंगे। मतलब रणनीति की रोशनी जरूरी है। हर कदम पर। हालात जब और जैसे भी मोड़ लें, रणनीति भी फौरन बदलें।

—स्ट्रेटजी फॉर एवरी एक्ट..

जैसे स्पिन खेलने में कमजोर वेस्ट इंडीज टीम के खिलाफ बॉलिंग की शुरुआत आर. अश्विन से कराकर धोनी ने सभी को चौंका दिया। और जब हर मैच में मध्य क्रम लड़खड़ा रहा था तो उन्होंने पठान की जगह रैना को उतारा।

अपना सौ फीसदी दो..

पूरे मन और प्राण से ही जुटना होगा। आधे-अधूरे मन से की गई कोशिशें नतीजे भी धुंधले ही लाएंगी। हरेक अपना सौ फीसदी सामने लाए। इसे सिद्ध सूत्र की तरह मन में उतारिए

—गिव योर हंड्रेड परसेंट..

जैसे फील्डिंग में कमजोर मानी जा रही हमारी टीम ने सेमी फाइनल और फाइनल में अपनी चुस्ती-फुर्ती से विरोधियों को एक-एक रन के लिए तरसा दिया। साथ ही कुछ नामुमकिन से कैच लिए और एकदम तय दिख रहे चौके बचाए। साभार - दैनिक भास्कर

लूट सको तो लूट लो...

280 लाख करोड़ का सवाल है ...*"भारतीय गरीब है लेकिन भारत देश कभी गरीब
नहीं रहा"* ये कहना है स्विस बैंक के डाइरेक्टर का.

स्विस बैंक के डाइरेक्टर ने यह भी कहा है कि भारत का लगभग 280 लाख करोड़
रुपये उनके स्विस बैंक में जमा है.

ये रकम इतनी है कि भारत का आने वाले 30 सालों का बजट बिना टैक्स के बनाया
जा सकता है. या यूँ कहें कि 60 करोड़ रोजगार ...के अवसर दिए जा सकते है.
या यूँ भी कह सकते है कि भारत के किसी भी गाँव से दिल्ली तक 4 लेन रोड
बनाया जा सकता है. ऐसा भी कह सकते है कि 500 से ज्यादा सामाजिक प्रोजेक्ट
पूर्ण किये जा सकते है. ये रकम इतनी ज्यादा है कि अगर हर भारतीय को 2000
रुपये हर महीने भी दिए जाये तो 60 साल तक ख़त्म ना हो. यानी भारत को किसी
वर्ल्ड बैंक से लोन लेने कि कोई जरुरत नहीं है. जरा सोचिये ... हमारे
भ्रष्ट राजनेताओं और नोकरशाहों ने कैसे देश को लूटा है और ये लूट का
सिलसिला अभी तक 2011 तक जारी है. इस सिलसिले को अब रोकना बहुत ज्यादा
जरूरी हो गया है.

अंग्रेजो ने हमारे भारत पर करीब 200 सालो तक राज करके करीब 1 लाख करोड़
रुपये लूटा. मगर आजादी के केवल 64 सालों में हमारे भ्रस्टाचार ने 280 लाख
करोड़ लूटा है. एक तरफ 200 साल में 1 लाख करोड़ है और दूसरी तरफ केवल 64
सालों में 280 लाख करोड़ है.

यानि हर साल लगभग 4.37 लाख करोड़, या हर महीने करीब 36 हजार करोड़ भारतीय
मुद्रा स्विस बैंक में इन भ्रष्ट लोगों द्वारा जमा करवाई गई है. भारत को
किसी वर्ल्ड बैंक के लोन की कोई दरकार नहीं है. सोचो की कितना पैसा हमारे
भ्रष्ट राजनेताओं और उच्च अधिकारीयों ने ब्लाक करके रखा हुआ है.

हमे भ्रस्ट राजनेताओं और भ्रष्ट अधिकारीयों के खिलाफ जाने का पूर्ण
अधिकार है.हाल ही में हुवे घोटालों का आप सभी को पता ही है - CWG घोटाला,
जी स्पेक्ट्रुम घोटाला , आदर्श होउसिंग घोटाला ... और ना जाने कौन कौन
से घोटाले अभी उजागर होने वाले है....
तो भाई लोग ... लूट सको तो लूट लो.....

घोटाले पर घोटाला

किसी गरीब लड़की की नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश की अस्मत लुट रही है

मुख्यमंत्री मायावती जी, हमारी बच्ची को इंसाफ दीजिए। जो आज हमारी बेटी के साथ हुआ वह और किसी दूसरी लड़की के साथ न हो, इसलिए बच्ची के साथ गलत काम का प्रयास करने और उस पर क्रूर हमला करने वालों को कड़ी से कड़ी सजा दिलवा दीजिए, हम गरीब दलित हैं, हम मजदूर हैं, हम आपसे इंसाफ की गुहार लगा रहे हैं', यह कहना है फतेहपुर की उस 16 वर्षीय बच्ची के पिता का, जिसको बलात्कार का विरोध करने पर गंभीर रूप से घायल कर दिया गया था। वह गंभीर अवस्था में कानपुर के हैलट अस्पताल के आईसीयू में भर्ती हैं।

फतेहपुर के बिंदकी के उरदाली गांव के मजदूर बदलू राम ने हैलट अस्पताल के आईसीयू के बाहर कहा कि हम बहुत गरीब हैं, मजदूरी करके अपना पेट पालते हैं। हमारी एक ही बेटी थी, जो बालिका इंटर कॉलेज में कक्षा 11वीं की छात्रा है। वह पढ़ाई में बहुत तेज थी, इसलिये हमने अपना पेट काटकर उसे साइकिल भी दिला दी थी और वह साइकिल से ही स्कूल जाती थी। लेकिन, पांच फरवरी को जब वह सुबह शौच के लिए अपनी सहेली छाया के साथ खेतों पर गई, तभी वहां शिव ओम नाम के लड़के और उसके कुछ साथियों ने उसे पकड़ लिया और उसके साथ रेप की कोशिश की। बेटी ने इसका विरोध किया तो उसे कुल्हाड़ी से काट डाला।

उत्तर प्रदेश में फतेहपुर जिले के बिंदकी क्षेत्र में शनिवार देर शाम को कुछ युवकों ने रोप का विरोध करने पर एक दलित नाबालिग लड़की का कुल्हाड़ी से एक हाथ, पैर और नाक, कान काट दिये थे। उसे गंभीर हालत में कानपुर के हैलट अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराया गया है।

लड़की के सिर, हाथ और चेहरे पर करीब एक दर्जन गहरे जख्म के निशान हैं और डॉक्टरों के अनुसार, रेप के प्रयास में नाकाम होने पर बहुत बेदर्दी से किसी धारदार हथियार से उस पर वार किए गए हैं। अस्पताल के डॉक्टर उसका इलाज करने में लगे हैं और कल शाम उसका एक बड़ा ऑपरेशन किया भी गया, जिसमें ऑर्थोपेडिक, प्लास्टिक सर्जरी और मैक्सियोफेशियल सर्जरी और डेंटल सर्जरी के डाक्टरों की टीम शामिल थी।

लड़की के पिता ने बताया कि उनकी बेटी को बहला फुसला कर उसकी सहेली छाया जंगल की तरफ ले गई, जहां शिव ओम नाम का गांव का ही लड़का अपने दो या तीन साथियों के साथ मौजूद था। लड़के ने पहले तो उसके साथ रेप का प्रयास किया, लेकिन जब वह नाकाम रहा तो उसने लड़की के ही दुपटटे से उसका मुंह बांध दिया और उसे कुल्हाड़ी से बुरी तरह काट डाला। वह कहते हैं कि इसके बाद लड़की की सहेली छाया अपने घर वापस आ गई, क्योंकि वह उस शिव ओम से पहले से मिली हुई थी।

उन्होंने रोते हुए कहा कि प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती हमारा दर्द अच्छी तरह समझ सकती हैं। बहन जी हमें इंसाफ चाहिए, जिस तरह से हमारी बेटी के साथ हुआ है वह अब और किसी लड़की के साथ न हो, इसलिये जो लोग इसके दोषी हैं उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दिलाई जाए। हम आपसे अपनी बेटी के लिए इंसाफ की गुहार लगा रहे हैं।

लड़की की मां महादेई ने हाथ जोड़ कर रोते हुये कहा, 'हमारी इकलौती बेटी है वह, बच जाए बस मैं भगवान से यही प्रार्थना कर रही हूं। हमारी एक ही बेटी थी। हम चाहते थे कि वह पढ़ लिख जाए तो उसकी शादी करें। हम तो नहीं पढ़े-लिखे हैं, लेकिन हम अपनी बेटी को पढ़ाना चाहते थे, इसलिये उसे पढ़ा रहे थे और वह भी बहुत मन लगाकर पढ़ती थी। हर साल इम्तिहान में पास भी होती थी। बेटी के इलाज के बारे में पूछने पर बदलूराम ने कहा कि अभी तक सारा इलाज मुफ्त हुआ है और उनसे कोई भी पैसा नहीं लिया गया है, उनके खाने-पीने का इंतजाम भी अस्पताल से ही करवाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि लड़की की हालत अब डॉक्टर ठीक बता रहे हैं।


विमान दुर्घटना में नेताजी की मौत को नकारते आठ सबूत

क्या नेहरू जी के शव के पास खड़े यह सन्यासी नेताजी सुभाष चंद्र बोस है?

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की मृत्यु के सम्बन्ध में कोई कहता है कि 18 अगस्त 1945 को नेताजी विमान दुर्घटना में मर गये, कुछ लोगों का कहना है कि वो छिपे हुये हैं। वस्तुतः स्थिति क्या है, इस सम्बन्ध में दृढ़तापूर्वक कोई नहीं कह सकता, लेकिन नीचे दिये गये तथ्यों के आधार पर यह अवस्य कहा जा सकता है कि 18 अगस्त 1945 को विमान दुर्घटना में नेता जी की मृत्यु नहीं हुई।

1. आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च अधिकारी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस सन् 1999 तक राष्ट्र सघ के यु़द्ध अपराधी क्यों घोषित किये गये? यदि 1945 में मर चुके थे तो उसके बाद 1999 तक युद्ध अपराधी मानना अपने आप में षक पैदा करता है।

2. सन् 1947 के आजादी के समझोते के गुप्त दस्तावेज तथा फाईल आई एन ए नं. 10 पेज नं. 279 को अध्ययन करने से पता चलता है कि 18 अगस्त 1945 को विमान दुर्घटना में नेता जी की मृत्यु नहीं हुई।

3. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की कथित मृत्यु की घोषणा के उपरान्त नेहरु जी ने सन् 1956 में शाहनवाज कमेटी तथा इन्दिरा गांधी ने 1970 में खोसला आयोग द्वारा जांच करवाई तथा दोनों रिर्पोटों में नेताजी को मृत घोषित किया गया, लेकिन 1978 में मोरारजी देसाई ने इन रिर्पोटों को रद्द कर दिया। तथा राजग सरकार ने भी मुखर्जी आयोग की स्थापना कर पुनः इस प्रष्न का उत्तर तलाषने का प्रयास किया था। लेकिन मुखर्जी आयोग द्वारा जांच रिपोर्ट को वर्तमान कांग्रेस सरकार ने मानने से ही इंकार कर दिया। इस जांच रिपोर्ट में जापान सरकार द्वारा जापान में 18 अगस्त 1945 को कोई दुर्घटना होने की बात को सिरे से खारिज करना इस सन्देह को सच्चाई में बदलता है कि नेताजी की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को नहीं हुई।

4. सन् 1948 में विजय लक्ष्मी राजदूत ने रुस से वापिस आकर मुम्बई शा न्ताक्रुज़ हवाई अड्ड़े से उतरते ही पत्रकारों के सामने कहा कि मैं भारत की जनता को ऐसा शुभ समाचार देना चाहती हूँ जो भारत की स्वतन्त्रता से बढ़कर ख़ुशी का समाचार होगा परन्तु नेहरु जी ने इस समाचार को जनता तथा पत्रकारों को देने से इन्कार कर दिया क्योंकि वह समाचार नेताजी से रुस में मुलाकात होने का संदेष था।

5. भारतीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 4 अगस्त 1997 को दिये गये निर्णय के अनुसार 'नेताजी के नाम के साथ मरणोपरान्त षब्द रद्द किया जाता है।' क्या यह सिद्ध नहीं होता कि नेताजी की मृत्यु नहीं हुई ।

6. सेना मुख्याल्य द्वारा आयोजित 1971 की लड़ाई का विजय दिवस का सीधा प्रसारण 16 दिसम्बर 1997 को दिल्ली दूरदर्षन पर सांय 5-47 बजे से लेकर 7-00 बजे तक किया गया जिसमें बताया गया कि 8 दिसम्बर 1971 को भारतीय सेना और मुक्ति वाहिनी सेना की कमान एक बाबा संभाले हुये थे। दो दो सेनाओं की कमान सम्भालने वाला आखिर यह बाबा कौन था। सरकार इस बाबा का रहस्योदघाटन करे।

7. 28 मई 1964 को प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरु की मृत्यु पर बनी सरकारी डाक्यूमैन्टरी फिल्म के लास्ट चैप्टर की फिल्म नं. 816 बी जिसमें साधु के वेष में नेता जी दिखाई दे रहे हैं।

8. नेताजी की तथाकथित मृत्यु 18.08.1945 के बाद मंचुरिया रेड़ियो स्टेशन से 19.12.1945, 19.01.1946, 19.02.1946 को नेता जी द्वारा राष्ट्र के नाम दिये गये सन्देश क्या यह साबित नहीं करते हैं कि नेताजी की मृत्यु का समाचार गलत है।

उपरोक्त तथ्यों को देखते हुये तो हम यह ही कह सकते हैं कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जो कि रहस्यमयी तरीके से रहे, रहस्यमयी तरीके से अंग्रेजों की जेल से निकले, रहस्यमयी तरीके से लड़ाई लड़ी, और रहस्यमयी तरीके से ही अदृष्य होकर आज भी रहस्य बने हुये हैं।

दिख सकता है एक और सूरज, रातें भी बनेंगी दिन


साल 2012 तक ऐसा कुछ हो सकता है जिसकी कल्पना शायद आपने न की हो। हो सकता है, किसी दिन अचानक आपको दिन ज्यादा रोशन लगने लगे, रात को चांद के साथ सूरज भी चमकता दिखे, और तो और रोज सुबह सूरज देखकर दिन शुरू करने वाले या उसे जल चढ़ाने वाले भी आसमान में दो सूरज देखकर कनफ्यूज हो जाएं। ऐसा हो सकता है, अगर अब तक की सबसे बड़ी सनसनी, वैज्ञानिकों की यह भविष्यवाणी सही साबित हो गई।
ब्रिटिश अखबार डेली मेल के मुताबिक, ऑस्ट्रेलिया की सदर्न क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी में फिजिक्स के सीनियर लेक्चरर ब्रैड कार्टर ने दावा किया है कि यूनिवर्स के सबसे चमकदार तारों में से एक बीटलगेस तारा अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है। यह जल्दी ही एक बड़े विस्फोट के बाद सुपरनोवा में तब्दील होकर खत्म हो जाएगा। इससे धरती पर रोशनी की बारिश होगी और इस शानदार लाइट वर्क से धरती पर रातें भी सूरज की रोशनी से नहाई होंगी। यह नजारा एक दिन नहीं, दो दिन नहीं, बल्कि पूरे दो हफ्ते तक रह सकता है।

नेताजी सुभाष चंद बोस को नमन


भारत की आजादी की लड़ाई के सबसे महान नायकों में से एक नेताजी सुभाष चंद बोस का जन्म 1897 में आज ही के दिन हुआ था। जहां एक तरफ कांग्रेस टुकड़ों में आजादी पाने की बात करती थी, वहीं नेता जी जल्दी से जल्दी पूर्ण स्वतंत्रता के पक्षधर थे। उन्हें लगता था कि गांधी जी के अहिंसा सिद्धांत से आजादी नहीं मिल सकती।

दूसरे विश्व युद्ध में उन्होंने ब्रिटेन और दूसरी पश्चिमी ताकतों के खिलाफ इंडियन नैशनल आर्मी का नेतृत्व किया। वह दो बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे, लेकिन गांधी जी से मतभेद के चलते उन्होंने अपना पद छोड़ दिया। माना जाता है कि 1945 में उनका देहांत हो गया।
- तुम मुझे मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा। - अगर दुनिया में सबसे बड़ा कोई अपराध है तो वह है अन्याय और गलत चीजों के साथ समझौता करना। - सच्चा सिपाही वह है जिसे मिलिट्री के साथ-साथ स्प्रिचुअल ट्रेनिंग भी दी गई हो। - हो सकता है कि किसी विचार की खातिर किसी की जान चली जाए, लेकिन उसकी मौत के बाद उसका वही विचार हजारों दूसरे लोगों के दिलों में पैदा होगा। विचार और सपने एक जगह से दूसरी जगह और एक देश से दूसरे देश इसी तरह फैलते हैं।
- आजादी दी नहीं जाती, आजादी छीनी जाती है। - इतिहास गवाह है, दुनिया में कोई बड़ा बदलाव सिर्फ बातचीत से कभी नहीं आया। - आज हमारी एक इच्छा जरूर होनी चाहिए। इच्छा मरने की, ताकि भारत जी सके। हमारे अंदर ताकत होनी चाहिए एक शहीद की मौत का सामना करने की, ताकि उसके खून से आजादी की कहानी लिखी जा सके।

गल रोटियां दी जदों चलाइए, खाण नूं बारूद मिलदा


बंतसिंह एक ऐसा नाम, जिसके कंठ से गीत फूटते ही सुनने वाले के तन मन में सिहरन सी दौड़ जाती है। कुहनियों से काट दिए गए हाथों और घुटनों से नीचे तोड़ दिए गए पांवों वाला एक कद्दावर इंसान। गंभीर चेहरा और दमदार आवाज। अत्याचारियों को नेस्तनाबूद कर देने का आह्वान। बंतसिंह कहते हैं कि दुश्मनों ने हाथ-पांव ही तो काटे हैं, मेरा हौसला थोड़े ही खत्म किया है। मेरी जुल्म से लडऩे की ताकत तो दुबारा से अंकुरित होकर लहलहा रही है।
बंतसिंह जहां भी जाते हैं, ऊंची आवाज में हेक लगाते हैं -असीं जड़ ना जुल्म दी छड्डणी, साडी भावेंं जड़ ना रहे। लोक वे मरजाण ओ चंदिरियां मांवां जिनां ने समराज जम्मेआ। गल रोटियां दी जदों चलाइए, खाण नूं बारूद मिलदा। यानी हम जुल्म की जड़ को मिटाकर ही दम लेंगे। भले ही हमारी अपनी जड़ क्यों न मिट जाए। वे मांएं इस धरती पर क्या कर रही हैं, जिन्होंने अत्याचारियों को जन्म दिया है। हम जब भी कुछ खाने को मांगते हैं, वे हमारी थाली में रोटी देने के बजाय बारूद परोस देते हैं।
पंजाब के मानसा जिले के गांव चब्बर में मनिहार का काम करने वाले बंतसिंह गांव-गांव में घूमते और जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाते। निर्धन, पीडि़त और दलितों में आत्मसम्मान का भाव जगाते।

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