जय हो ...ऐसे तो रोज बेचीं जाती हैं रुबीना ?


स्लमडॉग मिलिनियर की मशहूर बाल कलाकार रुबीना अली को उसके बाप ने बेचने की कोशिश की है । लंदन की एक वेबसाइट ने ये खुलासा किया है। वेबसाइट ने एक स्टिंग ऑपरेशन के जरिए रुबीना के पिता को रंगे हाथों कैमरे में कैद किया है।
बेबसाइट का दावा है कि रुबीना के पिता रफीक ने 2 लाख पाउंड यानि करीब १ करोड़ 80 लाख रुपये की मांग की।
वेबसाइट के मुताबिक रफीक ने स्टिंग के दौरान ये बार बार कहा कि इसके लिए हॉलीवुड के डॉयरेक्टर जिम्मेदार हैं। इस क्लिप में ये दिखाया गया है कि किस तरह रुबीना के पिता के साथ उसके चाचा भी इस ड़ील में हिस्सा ले रहे हैं।
इस वेवसाइट न्यूज ऑफ द वर्ल्ड में ये दिखाया गया है कि किस तरह उनके रिपोर्टर दुबई के शेख बनकर रुबीना के पिता से मिले और रुबीना को गोद लेने की बात की।
इस घिनौनी करतूत के लिए रुबीना के पिता को क्या सजा मिलनी चाहिए?
सवाल यह होना चाहिए की आख़िर रुबीना को बेचने की नौबत क्यूँ आई ? क्या कभी किसी ने सोचा है की सवदी अरब के शेख हमारे देश की 'लक्ष्मी' को खाड़ी देश में ले जाकर क्या करते हैं ? एक गरीब बाप कर ही क्या कर सकता है ? घर में लड़की पैदा होने पर मातम क्यों छा जाता है ? अमीरों के घर में लड़की हुई तो ठीक है, लेकिन गरीब कहाँ से दहेज़ के लिए धन इकठा करेगा ? शेखों की गलती नहीं है, गलती है हमारे समाज की ? रुबीना ही नहीं देश के कोने-कोने से रुबीना जैसी लड़कियां चंद सिक्कों के लिए बेचीं जाती हैं ? उनका कसूर क्या है, क्योंकि वह लड़की है ? उडीसा, पश्चिम बंगाल. बिहार, उत्तर प्रदेश, नेपाल से रोज सैकडों बच्चियां बेचीं जा रही हैं ? कई बार स्टिंग ओपरेशन हुए, लेकिन क्या रिजल्ट निकला ? अभी हाल मे आमिर खान कैसे फिल्म गजनी में बच्चियों के सौदागर पर फोकस किया गया था, बिलकुल सटीक ? टीवी वाले स्टिंग आपरेशन की बात करते हैं , उत्तर प्रदेश और बिहार में आज भी कई पिछडे इलाके में बच्चियों के बेचने का काम जारी है ।विदेशों में बढ़िया काम दिलाने की लालच देकर उनका मानसिक, आत्मिक और शारीरिक शोषण किया जा रहा है . बात रुबीना को लेकर चली थी, ऐसे रुबीना को सरकार भी बिकने से नहीं बचा सकती है,
इसके लिए समाज में परिवर्तन कैसे जरुरत है . लोगों को सोच बदलने की जरुरत है ... दहेज़ से तौबा करने की जरुरत है ?
क्या ऐसा कर सकते हो ?

जय हो ....पत्रकार महोदय

'इतने मरे'
यह थी सबसे आम, सबसे ख़ास ख़बर
छापी भी जाती थी
सबसे चाव से
जितना खू़न सोखता था
उतना ही भारी होता था
अख़बार।

अब सम्पादक
चूंकि था प्रकाण्ड बुद्धिजीवी
लिहाज़ा अपरिहार्य था
ज़ाहिर करे वह भी अपनी राय।
एक हाथ दोशाले से छिपाता
झबरीली गरदन के बाल
दूसरा
रक्त-भरी चिलमची में
सधी हुई छ्प्प-छ्प।

जीवन
किन्तु बाहर था
मृत्यु की महानता की उस साठ प्वाइंट काली
चीख़ के बाहर था जीवन
वेगवान नदी सा हहराता
काटता तटबंध
तटबंध जो अगर चट्टान था
तब भी रेत ही था
अगर समझ सको तो, महोदय पत्रकार !
श्री वीरेन डंगवाल जी की कलम से ....

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails