मैं रोज की तरह आज भी नगर निगम से लौट रहा था, की शास्त्री मार्किट में एक २४ साल का हट्टा - कट्टा कश्मीरी नौजवान मेरे सामने खड़ा हो गया । मैं एक अख़बार लेने पास की दुकान में जा रहा था । कश्मीरी नौजवान के कंधे पर कुल्हाडी थी, हाथ में एक झोला था । मेरे सामने आकर १० रुपए मांगने लगा । बोला, भूखा हूँ । चाय पिला दो । दो दिन से दिहाडी नही की है, मेरे पास एक भी रुपया नही है । मैं हैरान था, मेहनत करने वाले इस युवक पर जो मुझसे पैसे मांग रहा था । मेरे पास १०० रूपये का एक ही नोट था, मैं देना नही चाहता था । और यही हुआ, मैंने उसे आगे टरका दिया ।
अचानक मुझे एक फ़ोन का ख्याल आप गया । एक दिन एक महिला का मेरे मोबाइल पर फ़ोन आया की शहर में झुंड के झुंड कश्मीरी लोग घूम रहे हैं, यह उस समय की बात है जब देश में एक के बाद एक बम धमाके हुए थे । महिला ने फ़ोन पर कहा था की ये लोग आतंकवादी हो सकते हैं । मुझसे इन लोगों के बारे में अख़बार में ख़बर लिखवाना चाह रही थी । मुझे यह बात कतई नही जांची । मेहनत मजदूरी करने वाले लोग ऐसा क्यूँ करेंगे ?
उसके बाद आज कश्मीरी युवक द्वारा १० रूपये मांगने की घटना ने मुझे एक चीज सोचने पर मजबूर कर दिया । वह यह की क्या कश्मीर में भुखमरी है ? मुझे कश्मीर जाने का कभी मौका नही मिला है , लेकिन इतना जरुर सुना है, पढ़ा है, कि अगर दुनिया में कहीं स्वर्ग है तो वह कश्मीर है । क्या स्वर्ग जैसे जगह का यह हल है ? इस पर जम्मू - कश्मीर कि सरकार के साथ केन्द्र सरकार को भी सोचना चाहिए । आंतक का संताप झेल रहे स्वर्ग को बचाने और कश्मीर के लोगों को रोजगार देने कि पहल करनी चाहिए । कश्मीर का नौजवान जब कुल्हाडी उठा कर लकड़ी कट सकता है , पेट और परिवार चलाने के लिए वह कुछ भी कर सकता है ।
सरकारें अगर कुछ करना चाह रही हैं रोजगार मुहैया करवाए, आतंकवाद अपने आप ख़तम हो जाएगा ।
महाबीर सेठ