एक बार फिर पाकिस्तान को आतंकवादी देश ठहराने वाले ठोस सबूतों के साथ सरकार चिंघाड़ रही है, लेकिन अमेरिका तमाशबीन बना हुआ है । एक हद तक कूटनीति सही है लेकिन कब तक ? एसा लगता है की हम कुछ दिन बाद सब भूल जाते हैं,नेता कुछ एसा ही सोचते होंगे । पाकिस्तान के खिलाफ १५ ठोस सबूत है , भारत कूटनीति का सहारा ले रहा है । अगर यही हमला अमेरिका पर हुआ होता तो पाकिस्तान को दूसरा अफगानिस्तान बनते देर न लगता । तालिबान को ध्वस्त करने वाला अमेरिका सयंम बरतने को कह रहा है । ठीक है सयंम में रहना चाहिए, लेकिन कब तक ?
लोगों की लाशों की परवाह किए हम पाकिस्तान के साथ तू तू मैं मैं की राजनीति में लगे हुए हैं । चाहे वो सरकार हो, चाहे वो मीडिया हो या चाहे जो भी जिम्मेदार लोग हों, हर कोई युद्ध और युद्ध की राजनीति की बातें कर रहा है। सवाल ये है कि खुद को बचाने के लिए हम क्या कर रहे हैं? हम अपने आपको सुरक्षित रख पाएं, अपने लोगों पर आंच न आने पाए,इसका कोई उपाय करें, उससे ज्यादा जरुरी कई नेताओं को ये लग रहा है कि वो कैसे टीवी चैनलों पर जाकर बहस में हिस्सा लें। और ये बता पाएं कि कैसे उसकी पार्टी या उनकी सरकार का इससे कोई लेना देना नहीं है ।
यह ठीक है की युद्ध किसी मामले का हल नही है, लेकिन आतंकवाद को ख़तम करने के लिए क्या हो रहा है । अगर पाक में आतंकी ट्रेनिंग कैम्प हैं तो उसे पर कार्यवाई कब तक होगी ? ऐसे कई सवाल उठते रहेंगे, जब तक आतंक का समूल सफाया नही हो जाता है । और यह कब तक होगा नही पता ? बेगुनाह जनता के चिथड़े उड़ते रहेंगे, राजनीति होती रहेगी ।