सच का सामना की टीम को रजत शर्मा की आपकी अदालत में पेश कर सवाल - जवाब अच्छा था, लेकिन अदालत में लोगों द्वारा पूछे जा रहे सवालों का एक भी जवाब सही ढंग से ना तो सच का सामना टीम दे सकी और ना ही रजत शर्मा दर्शकों को संतुष्ट कर सके। सच का सामना के एंकर राजीव खंदेवल भी हंसने के अलावा ठीक जवाब नही दे सके । कुछ भी इससे सच का सामना को प्रोत्साहित किया जा रहा है और रजत शर्मा के इंडिया टीवी की टीआरपी भी बढ़ गई। क्या यह सब महज टीआरपी बढ़ाने का दूषित खेल नही है? सच का सामना में क्या हो रहा है, माना की सच बोलना चाहिए, लेकिन हर चीज का एक दायरा होता होता है, एक सब बंधन मुक्त हो जाए, तो भारत और दुसरे देशों में फरक क्या रह जाएगा।
पिछले दिनों मुझे थाईलैंड जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।वहां की फिजां को देख कर दंग रह गया। भारत की संस्कृत और रहन सहन में इमोशनल रिश्ता है, जो किसी अन्य देशों में नही मिल सकता है। महज टीआरपी बटोरने के लिए भारत की संस्क्रती को तहास नहस करना कहाँ तक जायज है, एस भी बहस होनी चाहिए।
सच दिखने का ढिंढोरा पीटने वाला मीडिया क्या कर रहा है। सभी को पता है। माफ़ करना मैं भी एक बड़े मीडिया ग्रुप से जुडा हूँ, मुझे ऐसी बातें नही करनी चाहिए, लेकिन ख़बरों की रोज हत्या देख कर मन बेचैन हो जाता है। बात टीआरपी की हो रही थी, रजत शर्मा और सच का सामना की टीम ने जिस तरह आपकी अदालत में उलूल-जुलूल जवाब दिया, उससे मैं बिल्कुल संतुष्ट नही हूँ।
सच लिखने वाली कलम कुंद करने के लिए कारपोरेट हॉउस काम कर रहा है। सच लिखना अब अपने पैरों पर कुल्हाडी मारने जैसा हो गया है। सारा गेम बिजनेस का है। पैसा आ रहा है, सब खुश, नही तो मीटिंग का दौर। मैं यह नही कहता की सच लिखने वाले नही है, लेकिन वे मजबूर हैं, उनके हाथों को पॉलिसी बनाकर लालावों ने बाँध दिया है। सच क्या दिखावोगे, सच दिखाना है तो गावों में जाओ, मुंबई और दिल्ली के एयर कंडीसन स्टूडियो में सच दिखाना छोड़ दीजिये, माफ़ करना यह सच नही है, यह टीआरपी बढ़ने का खेल है, यही सच है।