शहीद की मां बोली, नेता ही करते हैं टॉर्चर
जंग में लड़ते हैं सिपाही, सुर्खरू होते हैं जिल्लेइलाही। कारगिल युद्ध में अपनी जान न्यौछावर करने वाले शहीदों के परिजनों के हालात उपरोक्त पक्तियां बखूबी बयां करती हैं। इकलौते बेटे को मरणोपरांत शौर्य चक्र न मिलने से कारगिल के शहीद राइफलमैन सुनील जंग महत की मां आहत हैं। शौर्य चक्र के लिए लगातार दिल्ली निजाम में दस्तक देने वाली मां सरकारी रवैये से विचलित जरूर हैं, लेकिन लड़ाई लड़ने का संकल्प बरकरार है। जबकि लांस नायक केवलानंद द्विवेदी की विधवा कमला देवी चार साल पहले सरकारी क्वार्टर छोड़ कर गुमनामी की जिंदगी जी रही हैं। इन सूरमाओं के शहादत दिवस पर नेता और अधिकारी प्रतिमाओं पर माला चढ़ा अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं। उन्हें इतनी भी फुर्सत नहीं कि शहीदों के परिजनों से मिल उनकी तकलीफ को समझ सकें।
कारगिल युद्ध में शहीद हुए २ राष्ट्रीय राइफल रेजीमेंट के मेजर विवेक गुप्ता को मरणोपरांत महावीर चक्र प्रदान किया गया। इनका परिवार कुछ साल पहले लखनऊ छोड़ कर अपने पैतृक शहर देहरादून चला गया। परिवार पहले उस्मान एन्क्लेव, अलीगंज में रह रहा था। जबकि शहीद कैप्टन आदित्य मिश्र के पिता ले. जनरल जी.एस. मिश्र सरकार और नेताओं पर बिना कुछ बोले ही अपनी व्यथा बयां कर देते हैं। शहीद कैप्टन मनोज पाण्डेय के पिता को पेट्रोल पंप, सरकारी आवास तो मिल गया, लेकिन शहीद के छोटे भाई मनमोहन पाण्डेय आज भी एक अदद स्थायी नौकरी के मोहताज हैं। वे अस्थायी तौर पर विधानसभा में असिस्टेंट मार्शल पद पर नौकरी कर रहे हैं। सूबेदार नर नारायण जंग चाहते थे कि उनका इकलौता बेटा सेना में बड़ा अधिकारी बन उनके सीने को चौड़ा कर दे। बेटे सुनील जंग को सेना की भर्ती के लिए तैयार करना शुरू कर दिया था। १९९५ में वह घड़ी भी आ गई, जब सुनील जंग सेना में बतौर राइफलमैन भर्ती हो गया। अभ्यास के बाद पोस्टिंग जम्मू-कश्मीर के कारगिल सेक्टर में हुई। १९९९ में कारगिल युद्ध में पाक फौज के सिपाहियों को खदेड़ते हुए सुनील जंग वीरगति को प्राप्त हो गया। शहादत पर मां वीना महत खूब रोईं। शहादत के करीब एक साल तक अधिकारी, नेता और सामाजिक कार्यकर्ता नर नारायण जंग को हिम्मत देते रहे लेकिन वक्त बीतने के साथ सब कुछ वीरान होता चला गया। शहादत के ११ साल बाद स्थिति यह है कि उनके परिजनों का, बड़े नेता और अधिकारियों की बात तो दूर स्थानीय नेता भी दुख दर्द पूछने की जहमत नहीं उठाते। कारगिल विजय दिवस पर सेना और जिला प्रशासन ने याद कर लिया तो ठीक, नहीं तो अपने बेटे की तस्वीर देख कर मां वीना गर्वित हो जाती है।
४८ वर्षीय वीना महत अपने पल्लू से पावर के चश्मे को साफ करते हुए कुछ सोचती हैं, माथे पर शिकन आ जाती है। क्या बताऊं, मेरा एक ही बेटा था, बड़ा हैंडसम, खूबसूरत...। अपने पापा की तरह फौज में जाने के लिए उतावला था। जब वह ११ साल का था, तभी फौज में भर्ती होने की जिद पकड़ ली। बेटा सेना में भर्ती हुआ, पहली ही पोस्टिंग में दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए कारगिल में मोर्चा संभाला। ११ दिन तक मेरे बच्चे ने बर्फ खाकर दुश्मनों को नेस्तनाबूद कर दिया। कहते-कहते रुक जाती हैं वीना। एलबम निकाल कर फोटो दिखाती हैं और आंखों को साफ करती हैं, शायद उनकी आंखों में आंसू आ गए थे, जिसे वे जताना नहीं चाहती थीं।
दो कमरे के किराए वाले मकान में रह रहे वीना और उनके पति अपने दो बेटियों और दामाद के साथ गुजर-बसर कर रहे हैं। सरकार ने जंग की शहादत के बाद जीविका के लिए गैस एजेंसी का लाइसेंस दिया है। वीना महत खुद गोसाईंगंज स्थित गैस एजेंसी चला रही हैं, लेकिन लोगों की धमकियां उन्हें परेशान कर रही हैं। वे कहती हैं कि खास कर नेता उन्हें टार्चर कर रहे हैं। नेताओं के इस रवैये से दुखी वीना मजबूरी में परिवार की जीविका के लिए एजेंसी चला रही हैं। दुखी होकर अपने पति से अपने पुश्तैनी घर हिमाचल के धर्मशाला चलने को कहती हैं, लेकिन अब लखनऊ का तोपखाना बाजार उनसे छोड़ा नहीं जाता।
मुझे चैन से सोने देना
कब्र
मरने पर मेरे मुझे
सुपुर्दे ख़ाक कर देना
मेरी कब्र न बनाना
मुझे चैन से सोने देना.
नहीं चाहता खलल
नींद मे मेरी आये
ता उम्र उलझा रहा फिक्र मे
मर कर तो सकूँ आये.
मरने पर किसी के
जब फातिया पढ़ते हैं
चैन से सोने कि
सब दुआ करते हैं.
फिर क्यों कब्र किसी कि
वो बनाते हैं
कब्र पर इंसान नहीं
बस उल्लू नज़र आते हैं.
टूटे हुए पत्तों का ढेर
कब्र पर छा जाता है
जानने को हाल कोई
कब्र तक नहीं आता है.
मैं जिन्दा तो दबा रहा
फिक्रों के बोझ से
मरने पर न दबाना
मुझे पत्तों के बोझ से.
पत्तें भी तन्हां हैं
शाख से अपनी
सुपुर्दे ख़ाक कर देने
उनको भी कहीं.
चैन से सो जाएँ वे भी
तुम दुआ करना
उनके भी अमन कि खातिर
एक फातिया पढ़ना.
डॉ कीर्तिवर्धन
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