प्रिन्सिपल ऋचा बावा के कत्ल की सीबीआई जाँच क्यों नही ?
आरूषि व हेमराज हत्याकांड को नोयडा में मीडिया जिस तरह परदे पर दिखा रही है, मान लेते हैं कि ठीक है। लेकिन देश के अन्य भागों में ऐसे कई अनगिनत हत्याएं हो रही हैं , जिसमें राजनेता से लेकर पुलिस के आला अधिकारियों की सांठ-गांठ होती है । दिल्ली में बिल्ली छत से कूदती है तो उसे १५५ देश देखता है, लेकिन जब दिल्ली के बाहर कोई बड़ी घटना घट जाती है तो उसे कोई नहीं देख पाता। आरूषि-हेमराज हत्याकांड के पीछे की सच्चाई जानने में जुटी नोयडा व दिल्ली की प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया को जालंधर (पंजाब) में चौहरे कत्ल के राज से भी पर्दा उठाने की कोशिश करना चाहिए। पंजाब में जालंधर को मीडिया सेंटर माना जा रहा है, लेकिन जालंधर में एक ही रात में चार लोगों का कत्ल होता है, कुछ दिन तक पुलिस के साथ-साथ मीडिया दिग्गज अंधेरे में तीर चलाते हैं , बाद में पुलिस चुप के साथ मीडिया चुप हो जाती है । १९० दिन बाद भी पुलिस को कोई अहम सुराग नहीं लगा है। सबसे बड़ी बात तो यह कि जालंधर में जिसकी हत्या की गई वह कोई मामूली हस्ती नहीं थी, बल्कि समाज की प्रतिष्ठित महिला थी। जालंधर के कन्या महाविद्यालय (केएमवी) की तेजतर्रार प्रिंसीपल डॉ रीता बावा थीं। जिनका समाज के कई तबकों से तालुक था। शिक्षा जगत में अपने नाम की लोहा मनवा चुकीं डॉ ऋचा बावा का नाम राजनीति गलियारों से लेकर बालीवुड के उम्दा कलाकारों के साथ जुड़ा रहा। जालंधर ही नहीं पंजाब, दिल्ली, कलकत्ता, हिमाचल, नोयडा, मुंबई और देश के अन्य स्थानों पर उनके अच्छे जानने वाले थे। पर ऐसा क्या हुआ कि एक ही रात में उनके चौकीदार समेत उनकी हत्या कर दी गई। पुलिस भले ही जांच का बहाना बनाकर मामले से पर्दा न उठाना चाहे, लेकिन खुद सरकार भी इस मामले से परदा नहीं उठवाना चाह रही है। क्रमशा :
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