मैं अन्ना हजारे हूं..




मैं अन्ना हजारे हूं। किशन बाबूराव हजारे। भारत के उन चंद नेताओं में से एक हूं, जो हमेशा सफेद खादी के कपड़े पहनते हैं और सिर पर गाँधी टोपी पहनते हैं. मेरा जन्म 15 जून, 1938 को महाराष्ट्र के भिंगारी गांव के एक किसान परिवार में हुआ। पिता क नाम बाबूराव हज़ारे और मां का नाम लक्ष्मीबाई हजारे है। मैं छह भाई हूं। मेरा बहुत ग़रीबी में गुज़रा।

परिवार की आर्थिक तंगी के चलते मैं मुंबई आ गया। मैंने यहा सातवीं तक पढ़ाई की। कठिन हालातों में परिवार को देख कर मैं परिवार का बोझ कुछ कम करने के लिए फूल बेचनेवाले की दुकान में 40 रूपए महीने की पगार पर काम किया.

वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद सरकार की युवाओं से सेना में शामिल होने की अपील पर मैं 1963 में सेना की मराठा रेजीमेंट में बतौर ड्राइवर भर्ती हो गया।

1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान मैं खेमकरण सीमा पर तैनात था। 12 नवंबर 1965 को चौकी पर पाकिस्तानी हवाई बमबारी में वहां तैनात सारे सैनिक मारे गए। इस घटना ने मेरी ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया। मेरे गांव में बिजली और पानी की ज़बरदस्त कमी थी। मैंन गांव वालों को नहर बनाने और गड्ढे खोदकर बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए प्रेरित किया और ख़ुद भी इसमें योगदान दिया। मेरे कहने पर गांव में जगह-जगह पेड़ लगाए गए. गांव में सौर ऊर्जा और गोबर गैस के जरिए बिजली की सप्लाई की गई. 1990 में 'पद्मश्री' और 1992 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। मुझे अहमदनगर ज़िले के गाँव रालेगाँव सिद्धि के विकास और वहां पानी की उपलब्धता बढ़ाने के लिए विभिन्न तरीक़ों का इस्तेमाल करने के लिए जाना जाता है।

घटना के 13 साल बाद मैं सेना से रिटायर हुआ लेकिन अपने जन्म स्थली भिंगारी गांव भी नहीं गया। मैं पास के रालेगांव सिद्धि में रहने लगा।1990 तक मेरी पहचान एक ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता के रूप हुई, जिसने अहमदनगर जिले के रालेगांव सिद्धि को अपनी कर्मभूमि बनाया और विकास की नई कहानी लिख दी।

मेरी राष्ट्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार के धुर विरोधी सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर पहचान नब्बे के दशक में बनी जब मैंने 1991 में 'भ्रष्टाचार विरोधी जनआंदोलन' की शुरूआत की।

महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा की सरकार के कुछ 'भ्रष्ट' मंत्रियों को हटाए जाने की मांग को लेकर भूख हड़ताल की। ये मंत्री थे- शशिकांत सुतर, महादेव शिवांकर और बबन घोलाप। मैंने उन पर आय से ज़्यादा संपत्ति रखने का आरोप लगाया था। सरकार ने मुझे मनाने की कोशिश की, लेकिन हारकर दो मंत्रियों सुतर और शिवांकर को हटाना ही पड़ा। घोलाप ने मेरे खिलाफ़ मानहानि का मुकदमा कर दिया।

2003 में मैं कांग्रेस और एनसीपी सरकार के कथित तौर पर चार भ्रष्ट मंत्रियों-सुरेश दादा जैन, नवाब मलिक, विजय कुमार गावित और पद्मसिंह पाटिल के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ दी और भूख हड़ताल पर बैठ गया। मेरा विरोध काम आया और सरकार को झुकना पड़ा। तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने इसके बाद एक जांच आयोग का गठन किया।

नवाब मलिक ने भी अपने पद से त्यागपत्र दे दिया. आयोग ने जब सुरेश जैन के ख़िलाफ़ आरोप तय किए तो उन्होंने भी इस्तीफा दे दिया.

1997 में मैंने सूचना के अधिकार क़ानून के समर्थन में मुहिम छेड़ी. आख़िरकार 2003 में महाराष्ट्र सरकार को इस क़ानून के एक मज़बूत और कड़े मसौदे को पास करना पड़ा। बाद में इसी आंदोलन ने राष्ट्रीय आंदोलन का रूप लिया और 2005 में संसद ने सूचना का अधिकार क़ानून पारित किया। कुछ राजनीतिज्ञों और विश्लेषकों की मानें, तो मैं अनशन का ग़लत इस्तेमाल कर राजनीतिक ब्लैकमेलिंग करता हूं। कई राजनीतिक विरोधियों ने मेरा इस्तेमाल किया है। कुछ विश्लेषक मुझे निरंकुश बताते हैं और कहते हैं कि उनके संगठन में लोकतंत्र का नामोनिशां नहीं है।

1 comment:

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

सार्थक कथा... पूरा परिचय जानना सुखद रहा...
सादर आभार...

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