है रोटी की चाह जिन्हें, क्या आएगी उनको कविता
क्या कभी किसी भूखे ने, लिखी कोई कविता
हे कवि, क्या है उद्देश्य तुम्हारा
क्या सौंदरय वणॆन तक सीमित है तुम्हारी कलम
क्या नहीं दिखती भूख बेहाली
क्या तुमको दिखती नहीं गरीबी की जलन
हे रचनाकार, कभी भी शायद रहे होंगे भूखे
तुम तो उपवास मनाते हो,अरे उनका तो सोचो जो हर दिन उपवास रहते हैं
ये वे हैं जिन पर कोई कुछ लिखता नहीं
ये वे हैं जिनको जंचती कोई कविता नहीं
ये नंगे भूखे हैं, नहीं विद्या का ग्यान इन्हें
तुम्हारी लेखनी की गहराई का न है भान इन्हें
करो कुछ इनके लिए भी करो, कविता से नहीं करमों से
तुम्हारी कविता में है वो शीतलता नहीं
शांत करे जो इनके पेट की जलन
गरीबों की नहीं, गरीबी को मिटाना है
आज इंसान अपने सोच व मन से गरीब है
दूर करना है अपनी सोच को हमें
भूख नहीं पर अपनी रोटी को बांट सकते हैं हम.....
महाबीर सेठ- जालंधर
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