पानी- याद आएगी नानी

तेल का व्यापार दुनिया में समृद्धि का पर्याय बनकर उभरा है लेकिन संभव है, आने वाले कुछ दशकों में पानी का करोबार तेल का प्रतिस्पर्धी व्यापार बनकर उभरे। दुनिया में पानी का बाकायदा आयात शुरू हो गया है। स्पेन के शहर बार्सिलोना ने फ्रांस से 5॰ लाख गैलन पानी का आयात किया है। बार्सिलोना में बगीचों में पानी देने पर रोक लगा दी गई है। यदि कोई पानी देता पाया जाता है उसे पर 13॰॰॰ डालर का जुर्माना तय है। बात स्पेन की नहीं है, और भी देश इस लाइन में है। साइप्रस यूनान से पानी खरीदेगा। आस्ट्रेलिया के कई शहर किसानों व भवन निर्माताओं से पानी खरीद रहे हैं। चीनी हिमालयी पानी की धारा का रुख मोडने के प्रयास में है। अमरीका के कैलिफोर्निया में पहली बार पानी की राशनिंग की जा रही है। तो पानी होगा नीला सोना -डाऊ केमीकल्स के अध्यक्ष एंड्रयू लेवरिस ने फरवरी में विश्व आर्थिक मंच की बैठक में कहा था कि पानी इस शताब्दी का तेल है। यह नीला सोना बनता जा रहा है। पानी का विश्व कारोबार -ग्लोबल इनवेस्टमेंट रिपोर्ट 2॰॰7 के अनुसार विश्व पानी बाजार करीब 5॰॰ अरब डालर का है। इसमें पेयजल वितरण, प्रबंधन और अपशिष्ठ उपचार व कृषि जल शामिल हैं। पेयजल की खपत - दुनिया भर में इंसानी जरुरतों के लिए हर रोज 24.॰5 अरब लीटर पीने योग्य पानी की आवश्यकता है, लेकिन करीब 1॰ अरब लीटर स्वच्छ जल ही- उपलब्ध। -कहां जाता है पानी - संयुक्त राष्ट्र के अनुसार विश्व का 97 प्रतिशत पानी खारा है। शेष पानी की आपूर्ति उद्योग 2॰ प्रतिशत, कृषि 7॰ प्रतिशत और घरेलू उपयोग 1॰ प्रतिशत। बढ गया पानी का उपयोग -ज्यूरिख की एक कंपनी ससटेनबल एसेट मैनेजमेंट (एसएएम)ग्रुप इनवेस्टमेंट कंपनी की 2॰॰7 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ताजा पानी का उपयोग बढकर लगभग दो गुना से अधिक हो गया है। और बढेगी पानी की मांग -विश्व की आबादी 195॰ में 2.5 अरब थी। आज यह करीब 6.3 अरब है और इसके 2॰5॰ तक 9 अरब हो जाने की उम्मीद है। साफ है इतनी बडी आबादी को खिलाने के लिए और सिंचाई के पानी की जरूरत होगी। ये भी हैं कारण आबादी बढने के साथ बढता प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, पिघलते ग्लेशियर और घटता भूमिगत जल भी संभावित जल संकट के अन्य कारण हैं। भारत और चीन के लिए चिंता का सबब पिघलते ग्लेशियर भारत और चीन के लिए चिंता का सबब हैं। भारत और चीन की सभी प्रमुख नदियां -ब्रह्मपुत्र, सिंधु, यांगत्सी, गंगा और मिकांग हिमालय-तिब्बत के पठार से निकलती हैं। दुनिया की करीब 38 प्रतिशत आबादी को यह पानी उपलब्ध कराता है। जलवायु परिवर्तन के चलते ग्लेशियर पिघलने से आने वाले वर्ष में जल संकट और बढने की आशंका है।

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