जारी है पत्रकारिता

शराब के संग डेक पर

कबाब के संग मेज पर

शबाब के संग सेज पर

जारी है, इस दौर में पत्रकारिता

गन माईक के दम से

कलम के अहम् से

लक्ष्मी की चाहत में

जारी है, जीवन बिगारने बनानेकी पत्रकारिता

अनैतिक राहो से

अमानविये निगाहों से

अश्रधय भावों से

जारी है, लुटने खसोटने की पत्रकारिता

टी आर पी की चाह में

विजुअल की चोरी से

मनगढ़ंत स्टोरी से

जारी है, कलमुही पत्रकारिता

भुत प्रेत पिचास से

काम और अपराध के बेहूदी बकवास से

जारी है, राक्षसी पत्रकारिता

मानिए न मानिए आज के इस दौर में हो गई है

बदचलन औ बेहया पत्रकारिता .............

1 comment:

shyam parmar said...

महाबीर सेठ जी,

नमस्कार, सलाम, आदाब,
आपकी कविता को जितना सम्मान दिया जाए उतना कम है, साथ ही मैं सम्मान करता हु आपकी पीड़ा की जो इस कविता में झलक रही है....

फ़िर भी उम्मीद है की जब तक पत्रकारिता समाज में आपके जैसे विचारों वाले लोग बचे है... तब तक अभी इस पेशे की शाख बची हुयी है.....

श्याम परमार,
एन डी टी वी मेरठ

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