यह कैसी श्रद्धांजलि ?






















मुंबई में आतंकी हमले को एक माह पूरा भी नही हुआ की जालंधर (पंजाब) में सत्ताधारी नेताओं और बड़ी हस्तियों ने नए साल के पहले ही पार्टी का जमकर लुत्फ़ उठाया । इन लोगों ने आंतकी हमलों में शहीद हुए शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक दिन पहले नया साल न मनाने का nirday लिया था । इस पार्टी को मुख्यमंत्री के करीबी रहे लोगों ने आयोजित की । जिसमें मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के करीबी और बडे पद पर काम कर रहे नेता की पत्नी ने तो कमाल ही कर दिया । जुल्फे झटकीं, युवा पार्टनर के साथ खूब थिरकीं । पंजाब पुलिस के डीएसपी भी दारू की गिलास के साथ ठुमके लगाए । क्या खूब दी है शहीदों की श्रद्धांजलि...

ब्रिटिश फौज की वर्दी और गांधी


गांधी के ब्रिटिश फौज की वर्दी पहनने के तथ्य का विवाद के रूप में तूल पकड़ना देख रक्षा मंत्रालय बचाव की मुद्रा में आ गया है और उसने अब प्रस्तावित ‘शताब्दी सैनिक समाचार स्मारिका’ में आवश्यक फेरबदल की प्रक्रिया शुरू कर दी है।रक्षा सूत्रों के अनुसार रक्षा मंत्रालय की पत्रिका के 2 जनवरी 2009 को 100 साल पूरे होने के मौके पर प्रकाशित की जा रही इस स्मारिका में गांधी जी के ब्रिटिश फौज में शामिल होने संबंधी समाचार को संक्षिप्त और सम्पादित किया जा रहा है और उसमें तमाम अतिश्योक्तियों को अंतिम समय में हटाया जा रहा है।रक्षा सूत्रों ने कहा कि इस पूरे प्रकरण को विवाद के तौर पर पेश करना गैर जरूरी है क्योंकि स्वयं महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा ‘माई एक्सपीरियेंस विद ट्रुथ’ में विस्तार से इस बात का जिक्र किया है कि किन परिस्थितियों में उन्होंने ब्रिटिश फौज की वर्दी पहनी थी और वर्ष 1889 के समय बोअर की लड़ाई में उन्होंने किस तरह पहल करते हुए एम्बुलेंस यूनिट गठित की थी।रक्षा प्रवक्ता सितांशु कार से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने सवाल को टालते हुए कहा, “आप 2 जनवरी 2009 तक का इंतजार करिये जब सैनिक समाचार की शताब्दी स्मारिका का लोकार्पण किया जाएगा। इस अंक के लिए हमारी एक मजबूत सम्पादकीय टीम है जो सभी विषयों के साथ उचित न्याय कर रही है और इतिहास के तथ्यों को जस का तस पेश करने में यह टीम पूरी तरह सक्षम है”।इस बारे में कार ने कुछ भी कहने से इंकार कर दिया कि मामले के विवाद के रूप में पेश किए जाने के बाद मूल लेख को बदला जा रहा है या नहीं।‘यूनीवार्ता’ ने सैनिक समाचार की इस स्मारिका की अग्रिम प्रति के आधार पर इतिहास के इस बेहद अनजाने तथ्य को पेश किया था कि गांधी जी भी ब्रिटिश फौज में शामिल हुए थे और उन्होंने ब्रिटिश फौज की वर्दी भी पहनी थी। स्मारिका में गांधी जी का फौजी वर्दी वाला चित्र भी प्रकाशित हो रहा है जिसे हटाए जाने की योजना नहीं है।रक्षा सूत्रों ने कहा कि स्मारिका में जो कुछ प्रकाशित हो रहा है उसमें कुछ भी नया नहीं है और इसमें 2 जनवरी 1909 से लेकर आज तक के सैनिक समाचार और फौजी अखबार के लेखों का संकलन ही है। गांधी जी के बारे में जिस चर्चित लेख ने बहस का रूप लिया है वह तीन दशक से अधिक पहले प्रकाशित हुआ था।रक्षा सूत्रों के अनुसार स्मारिका की सम्पादकीय टीम इतिहासकारों की राय ले रही है और लेख को इस तरह सम्पादित किया जा रहा है कि गांधीवादियों की भावना को कोई ठेस न पहुंचे । - मुकेश कौशिक

आखिर कब तक उडेंगे इंसानी चिथड़े ?


एक बार फिर पाकिस्तान को आतंकवादी देश ठहराने वाले ठोस सबूतों के साथ सरकार चिंघाड़ रही है, लेकिन अमेरिका तमाशबीन बना हुआ है । एक हद तक कूटनीति सही है लेकिन कब तक ? एसा लगता है की हम कुछ दिन बाद सब भूल जाते हैं,नेता कुछ एसा ही सोचते होंगे । पाकिस्तान के खिलाफ १५ ठोस सबूत है , भारत कूटनीति का सहारा ले रहा है । अगर यही हमला अमेरिका पर हुआ होता तो पाकिस्तान को दूसरा अफगानिस्तान बनते देर न लगता । तालिबान को ध्वस्त करने वाला अमेरिका सयंम बरतने को कह रहा है । ठीक है सयंम में रहना चाहिए, लेकिन कब तक ?

लोगों की लाशों की परवाह किए हम पाकिस्तान के साथ तू तू मैं मैं की राजनीति में लगे हुए हैं । चाहे वो सरकार हो, चाहे वो मीडिया हो या चाहे जो भी जिम्मेदार लोग हों, हर कोई युद्ध और युद्ध की राजनीति की बातें कर रहा है। सवाल ये है कि खुद को बचाने के लिए हम क्या कर रहे हैं? हम अपने आपको सुरक्षित रख पाएं, अपने लोगों पर आंच न आने पाए,इसका कोई उपाय करें, उससे ज्यादा जरुरी कई नेताओं को ये लग रहा है कि वो कैसे टीवी चैनलों पर जाकर बहस में हिस्सा लें। और ये बता पाएं कि कैसे उसकी पार्टी या उनकी सरकार का इससे कोई लेना देना नहीं है ।

यह ठीक है की युद्ध किसी मामले का हल नही है, लेकिन आतंकवाद को ख़तम करने के लिए क्या हो रहा है । अगर पाक में आतंकी ट्रेनिंग कैम्प हैं तो उसे पर कार्यवाई कब तक होगी ? ऐसे कई सवाल उठते रहेंगे, जब तक आतंक का समूल सफाया नही हो जाता है । और यह कब तक होगा नही पता ? बेगुनाह जनता के चिथड़े उड़ते रहेंगे, राजनीति होती रहेगी ।

कचेहरी और अदालत को ले जाएं 'थानेदार'


माइक से बार-बार आवाज गूंज रही थी कि थानेदार सिंह की अम्मा कचेहरी देवी और बप्पा अदालत सिंह गायब हो गए हैं । थानेदार जहां कहीं भी हों, आकर पूछताछ केंद्र से कचेहरी और अदालत को ले जाएं । कचेहरी बार-बार बेहोश हो रही है, अदालत का बुरा हाल है । छोटकू के अम्मा भी मेले में भटक गई हैं, छोटकू के साथ । अम्मा ना तो अपना नाम बता रही है और अपने मरद का नाम भी नहीं बता रही हैं, हां यही कह रहीं है कि छोटकू के बप्पा कह कर गोहराओ, दौड़ते चले आएंगे । मुनव्वर की मुन्नी देवी भी बड़का मंदिर के पास भटक गई हैं, रो रहीं हैं, किसी ने खोआ-पाया दफ्तर तक पहुंचा दिया है । मुन्नी देवी को मुनव्वर ले जाओ, इन्हें बेहोश होने वाला दौरा पड़ रहा है । यह सीन है एक मेले की, जहां मैं भी पहुंचा हुआ था....खोया-पाया दफ्तर के सामने अजब-गजब एनाऊंसमैंट सुन कर प्रसन्न हो रहा था । इस अजब-गजब के आगे राजू भैया श्रीवास्तव की मसखरी फेल हो रही थी । .... तभी हटो-हटो....बड़ी-बड़ी मूंछों पर हाथ फेरते हुए एक भारी-भरकम इंसान भीड़ को चीरते हुए चिल्ला रहा था... हाय कचेहरी मैया तू कहां चली गइव रहा । अदालत बप्पा भी तोहरे साथे ही हैं । बुढऊ से कहिन रहा कि टैंट में रहौ, पर मानिन नाहीं । अपनौं हेराय गे अऊर साथेम मैय्यक भी हेरवाय दिहिन ।सगरौ मजा फ्यूज कइ दिहिन । अरे थानेदार भैया का भवा । काहे परेशान हौ, मैया और बप्पा मिल गइन । अब का दिक्कत है॥चलौ मेलवम थोरय घूम आवा जाए । का खाक चले बड़कऊ तीन घंटा तो खोजइम लगाइ दीन, अब का होई, अब तौ चलेन का टाइम होइ गवा है भैया । छोटकू के अम्मा छटपटाइ रहीं हैं, अब तक छोटकू के बप्पा नाहीं आए । छोटकू पछाड़े मार कई रोवत बाटय । छोटकू के अम्मा फिर से एनाऊंसमैंट वाले से छोटकू के बप्पा को पुकारे के लिए कहती है । एनाऊसमैंट करने वाला कहता है, का माई बार-बार पुकार रहिन है, ना तौ तू आपन नमवा बतावत हिव और ना ही छोटकू के बप्पा कय । तभी मुन्नी देवी चिल्ला पड़ती है ... अरे वह जात हैं मुनव्वर, हे चिल्लम का बप्पा, हम यहां हन । मुन्नवर बोला, हाथ पकर कइ चलइ कहा रहा, हाथ काहै छोडि दिहिस रहा । हम तो हाथय पकड़ कर रखेन रहा ... लेकिन तुमही गायब होइ गइव तो हम का करी । हाथ देखन तो कोही अऊर कैय रहा ? मेरी ट्रेन छूटने में अभी एक घंटे का समय था, स्टेशन जाते-जाते आधे घंटे लग जाते । मैंने आधा घंटा रह कर छोटकऊ के बप्पा की एंट्री का इंतजार करना चाह रहा था । हालांकि इस बीच कई और अजब-गजब नामों का उच्चारण हो रहा था । गायब होने की सूची में कई नाम शामिल हो चुके थे । लेकिन मुझे कचेहरी, अदालत, छोटकऊ के अम्मा (मम्मी)और मुन्नवर की मुन्नी में था । हालांकि कचेहरी और अदालत को थानेदार ले जा चुका था, मुन्नी भी अपने मरद मुनव्वर के साथ जा चुकी थी । लेकिन छोटकऊ और उसकी अम्मा में मेरी दिलचस्पी बनी हुई थी...लेकिन छोटकऊ के बप्पा (डैड) अभी तक खोया-पाया सैंटर नहीं आए थे, इस बीच मेरे दोस्त ने कहा,चलो टऒेन छूट जाएगी ।

क्या भारतीय टीवी चैनल ऎसा नहीं कर सकते?

बात उस समय की है, जब पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी एक आत्मघाती हमले में मारे गए थे। प्रसिद्ध अमेरिकी पत्रिका “ टाइम” ने उस हादसे की तस्वीर प्रकाशित नहीं की। लेकिन अपने इस फैसले के बारे में एक संपादकीय जरूर प्रकाशित किया।
“टाइम” ने लिखा, बावजूद इसके, कि यह हादसा दुनिया पर असर डालने वाली घटनाओं में से एक था, बावजूद इसके, कि राजीव गांधी विश्व के एक प्रमुख नेता थे, उन्होंने संपादकीय मंडल के विचार-विमर्श के बाद उनकी मृत्यु की तस्वीर प्रकाशित नहीं करने का फैसला किया।
“टाइम” के संपादकीय में लिखा गया था, कि “वे तस्वीरें प्रकाशित नहीं करने का फैसला इसलिए किया गया कि मौत ने उन्हें वह गरिमा नहीं बख्शी जिसके वह हकदार थे। हम वे तस्वीरें नहीं प्रकाशित कर उनकी गरिमा की रक्षा करना चाहते थे।“
यह बात हम भारतीय समाचार टीवी चैनलों को याद दिला कर एक अनुरोध करना चाहते हैं, कम से कम लाशों की तसवीरें तो प्रसारित नहीं करिए।
बम विस्फोट हो, या चामुंडा मंदिर में भगदड़, या लखनऊ फ्लाईओवर के धंसने से उसके नीचे दबे मृत शरीर- उनकी तस्वीरें दिखा कर क्या आप किसी मृतक की गरिमा का अनादर नहीं कर रहे? क्या उनके शोकग्रस्त परिवारों के प्रति आप यत्र- तत्र बुरी हालत में पड़ी लाशों की तस्वीरें टीवी पर दिखा कर उस हादसे से भी ज्यादा क्रूरता नहीं बरतते?
कितने ही अखबारों ने भोपाल गैस कांड के बाद लाशों की वीभत्स तस्वीरें छपने से परहेज किया था। तस्वीरें छपीं जरूर, लेकिन प्रतीकात्मक।
हादसों की रिपोर्टिंग करते समय क्या टीवी चैनलों पर भी पत्रकारिता की इस गरिमामय परंपरा का पालन नहीं किया जा सकता? - साभार : जोश -गरम चाय

सीमाओं में रहे, मुंबई की ये मनसे .....

मन से यदि हम चाहते, देश रहे खुशहाल ।

मिलकर रहना सीख लें, सब भारत के लाल ।

सब भारत के लाल, बिहारी हों कि मराठी ।

लेकिन भाई पर भाई बरसाता लाठी ।

चक्र सुदर्शन टूट रहा है, इस अनबन से ।

सीमाओं में रहे, मुंबई की ये मनसे .....

अशोक चक्रधर

बडे भाई निशीथ जोशी की कलम से


स्वर्गीय आपा और लाला भाई (मो माबूद ) के नाम जिनके बिना ये बेटा इतना बड़ा नहीं हो सकता था। आपकी बहुत यद् आती है। इंशा अल्लाह कभी तो मुलाकात होगी। वैसे तो आप हरदम मेरे साथ हो। कभी तहजीब के रूप में तो कभी दुआओं के ताबीज के रूप में। सिर्फ़ यही है मेरी जिंदगी की कमाई -------निशीथ
खौफ ------
रोक लो इन हवाओं को
मत आने दो शहर से
मेरे गांव की ओर
वरना मंगल मामा
हिंदू हो जाएगा
और रहमत चाचा
मुसलमान हो जाएगा
और रहमत चाचा मुसलमान.....

मालेगांव की ‍आग पहुंची उत्तर प्रदेश

मालेगांव बम धमाके की आग अब उत्तर प्रदेश में सुलगने लगी है । गोरखपुर एक बार फिर सुर्खियों में है । इस बार साध्वी प्रज्ञा को लेकर गोऱखपुर का नाम सामने आया है । गोरखपुर के विधायक पर साध्वी के तार जुड़े होने के आरोप है । गोरखपुर के सांसद और पूर्वी उत्तर प्रदेश के हिंदू नेता योगी आदित्य नाथ भी घेरे में है । यह वही योगी है,जिन पर यूपी की पुलिस ने एक बार हाथ डालने की कोशिश की थी, तब गोरखपुर समेत पूरे उत्तर प्रदेश में बवाल खड़ा हो गया था । गोरखपुर में आगजनी हुई दंगा हुआ । सब राजनीति से प्रेरित है ।

पहले खादी से तो अब भगवा से राजनीति

एक जमाना था जब खादी से देश की राजनीति संचालित होती थी, लेकिन समय बदल गया है । देश की राजनीति खादी नहीं भगवा से चल रही है । भगवा है ठीक है, लेकिन भगवा की आड़ में चंद राजनेता गंदी राजनीति कर रहे हैं । हो सकता है साध्वी भी इसी गंदी राजनीति का शिकार बनी हो, लेकिन जांच तो होनी ही चाहिए ।

बहुत कुछ छिपा है बीहड़ों में

मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की बीच पड़ते बीहड़ों में वह बहुत कुछ सच्चाई छिपी है, जो एटीएस को तलाश है । चंबल की घाटी में हर वह सुराग मिल सकता है, जो एटीएस को शायद उत्तर प्रदेश के तराई इलाके से नहीं मिल सकती है । मालेगांव ब्लास्ट के तार उत्तरप्रदेश से होते हुए जम्मू-कश्मीर तक पहुंच गए हैं। मुंबई एटीएस ने बुधवार को कानपुर से एक शख्स को हिरासत में लिया है। उस शख्स का नाम दयानंद पांडे बताया जाता है और एटीएस को उसके वीएचपी से जुड़े होने की आशंका है। दयानंद को लेकर एटीएस लखनऊ रवाना हो गई। लखनऊ लाकर उससे मालेगांव ब्लास्ट मामले में पूछताछ की गई।एटीएस ने सोमवार को मुंबई की अदालत में एक अर्जी दाखिल कर एक प्रमुख हिंदू नेता से पूछताछ करने की इजाजत मांगी है तथा इस संबंध में उत्तरप्रदेश सरकार से सहयोग दिलाने की बात कही है। एटीएस ने फरुखाबाद और पूर्वी उत्तरप्रदेश में गुपचुप अभियान चलाकर मालेगांव विस्फोटों के लिए ठोस सबूत जुटाए हैं।भाजपा उत्तरप्रदेश से पार्टी के सांसद आदित्यनाथ का खुलकर बचाव में उतर आई है । आदित्यनाथ ने मालेगांव विस्फोट में उनका हाथ होने के बारे लगाई जा रही अटकलबाजियों के बाद मंगलवार को एटीएस को उन्हें गिरफ्तार करने की चुनौती दी थी।


चुनौती छोड़ कर जांच में सहयोग करे नेता
अगर साध्वी सही है, योगी आदित्यनाथ सही है, दयानंद पांडेय ने कोई गलत काम नहीं किया है तो भाजपा और संघ एटीएस को चुनौती क्यों दे रही है ? सभी राजनीतिक दलों को एक होकर इसके लिए अपेन स्तर पर एक जांच कमेटी तैयार कर मामले की सही जांच करना चाहिए । पुलिस और कानून को चुनौती देकर आखिर हमारे राजनेता साबित क्या करना चाह रहे हैं । मामले को राजनीतिक तूल दिया जा रहा है, जो देश के घातक है ।

देह दर्शन या ड्रग्स को बढ़ावा


मधुर भंडारकर की फिल्म ‍'फैशन' में भारतीय फिल्म की नायिकाओं ने सभी पराकाष्ठा पार कर दी है । देह दर्शन के लावा धूम्रपान 'फैशन' का सबसे बड़ा नकारात्मक हिस्सा है । फिल्म की नायिका कंगना राणावत और प्रिंयका चोपड़ा जिस तरह खुलेआम सिगरेट के धुंए के छल्ले उडाती नजर आईं, तो उससे भी कहीं ज्यादा बोल्ड शराब पीने की सीन रही है । अधनंगे बदन के साथ सिगरेट और शराब की मस्ती वाली 'फैशन' समाज को क्या संदेश देना चाह रही है, यह फिल्म देखने वाले भी नहीं बता सके । 'डा‍न' फिल्म में हीरो शाहरुख खान ने सिगरेट के धुंए उड़ाने पर जब बवाल खड़ा हो सकता है, तो फैशन की दारू और सिगरेट सैंसर बोर्ड को क्यों नजर नहीं आए । फैशन में तो हद ही कर दी है, मिनट दर मिनट सिगरेट के कश हीरो और हीरोइन लगा रहे हैं, लेकिन किसी को परवाह नहीं है । फिल्म में कंगना राणावत को ड्रग्स लेते जैसे दिखाया है, क्या यह उचित है ? कंगना राणावत ही क्यों प्रिंयका चोपड़ा भी क्लब में ड्रग्स लेती हैं, उसके बाद अपना सबकुछ लुटा देती हैं (हालांकि चोपड़ा इससे पहले ही अपना सबकुछ लुटा चुका होती है)। फैशन में मुंबई की क्लबों को जिस तरह से दिखाया गया है, सही हो सकता है, लेकिन फिल्म में सिगरेट, शराब, स्मैक, नशीले इंजैक्शन लेते होरी और हीरोइन ने सभी मर्यादा लांघ कर लोगों को गलत संदेश दिया है ।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा सर्वजिनक स्थानों पर धूम्रपान पर पाबंदी लगाने के बाद उम्मीद जगी थी कि लोग सुधर जाएंगे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो सका । जब सिगरेट, शराब और अन्य तरह के नशीले ड्रग्स पर रोक है तो फैशन में इतनी मस्ती क्यों ? सैंसर बोर्ड सो कर फिल्में पास क्यों कर देता है । यही नहीं धूम्रपान पदार्थों के विज्ञापन पर भी रोक है, लेकिन फैशन में धूम्रपान पर रोक क्यों नहीं है ?

आखिर भगवा धारियों में उबाल क्यो ?


मालेगांव बम धमाके में साध्वी प्रज्ञा सिंह का नाम आने से 'भगवा' में आखिर उबाल क्यों हैं ? क्या सिर्फ़ मुसलमान ही आंतकी हो सकते हैं ? "भगवाधारी" का जब नाम आया तो सारे भगवाधारी नाराज हो गए । जब मुल्ला, मौलवी और मुसलमानों पर उंगली उठाई जा सकती है, तो हिंदू संगठनों में कुछ भगवाधारियों पर उंगली क्यों नहीं उठ सकती है । चलो कुछ देर के लिए मान लेते हैं कि साध्वी प्रज्ञा का धमाके से कोई संबंध नहीं है, तो डर किस बात की है । साध्वी उमा भारती बिल्कुल ठीक कर रही हैं, लेकिन यह कोई प्रज्ञा का चरित्र प्रमाण पत्र नहीं है, जिसे ठीक समझा जाए । देश से जुड़ी हुई गंभीर बात है, जिस पर सभी दलों को एक होकर काम करना चाहिए । ऐसा नहीं कि देश में कुछ मुसिलम संगठन ही आंतकी गतिविधियों में संलिप्त हैं, हिंदू संगठनों के कुछ मठाधीश भी इस दायरे में आ रहे हैं । हालांकि कभी छात्र नेता रहीं प्रज्ञा का चंबल के आस-पास इलाके में प्रवचन करना लोगों को पच नहीं रहा है । मान लेते हैं कि प्रज्ञा निर्दोष है, तो जांच से घबराना कैसे ? बवाल पर उबाल फैलाने के लिए न्यूज चैनलों ने काम शुरू कर दिया है । कोई मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज को जोड़ रहा है तो कोई वरिष्ठ अफसर से मोहब्बत की बात कर रहा है । छात्र राजनीति के बाद साध्वी बनी प्रज्ञा में क्या बदलाव आया , जिससे उनका नाम आतंकी गतिविधियों से जुड़ गया ? इस पूरे मसले पर भगवाधारी ही नहीं तमाम हिंदू संगठनों को एक होकर गंभीरता से सोचना होगा । पूरे मामले को इमानदारी के साथ जांच होनी चाहिए ।

कहां हो गांधी जी

मैं २ अक्तूबर को एक न्यूज चैनल देख रहा था,कि चैनल पर दिखाया गया कि स्वर्ग की सीढ़ी मिल गई है । आप स्वर्ग जाना चाहते हैं तो रिपोर्टर के साथ रहें । मैं भी पीछे-पीछे चल पड़ा । अभी स्वर्ग की तीन सीढ़िया चढ़ा ही थी कि दो कुत्ते मेरे पीछे लग गए । बोले मैं जाऊंगा, मैंने पूछा क्यों ? जवाब था कि कुत्ते के बिना इंसान स्वर्ग जा ही नहीं सकते । युधिष्ठर ने भी कुत्तों को सहारा लिया था । स्वर्ग के साथ नरक को भी रास्ता जा रहा था, मैंने सोचा नरक के प्राणियों का बाहर से ही दर्शन कर लिया जाए । झांक कर देखा तो मिजाज शुभान अल्लाह....दिल करा रुक जा... वहां सुर, सुरा और सुंदरी अलमस्त दिखे । मेरी निगाहें किसी को खोज रही थी, लेकिन नरक...छी-छी-छी ... सो मैंने स्वर्ग की तरफ पैर बढ़ा दिए । मेरे कुछ जानपहचान वाले मिले, कहा स्वर्ग में स्वागत है । मैंने पूछा गांधी जी नहीं दिख रहे हैं, जवाब मिला कहीं बैठे अहिंसा की बात कर रहे होंगे । मैं आगे बढ़ा, देखा गाँधी जी लाठी के सहारे स्वर्ग से अपने सपने के भारत को टुकुर-टुकुर निहार रहे थे ।
गांधी जी का मन बैचेन था, पांव छूकर मैं भी नीचे देखने लगा । गांधी जी पावर वाले चश्मे के पीछे से एक नजर मुझ पर डाला, कहा इतनी भी क्या जल्दी थी । मैंने कहा बापू जी मैं तो एक चैनल के सुझाए रास्ते से जीते- जी स्वर्ग पहुंचा । आप से मिलने की बड़ी चाह थी, सो पूरी हो गई । मुन्ना भाई में आप सीधे टपोरी संजय दत्त से बातें कर रहे थे । फिल्म देखी तो मुझको भी आपसे मिलने की इच्छा पैदा हो गई । कई रातें लाइब्रेरी में गुजारी, लेकिन आप नहीं आए । हां ख्यालों में रोज आते रहे । मोबाइल के रिंग टोन में ‍‍॥ऐनक पहने लाठी पकड़े चलते थे वो शान से, जालिम कांपे थर-थर-थर सुनकर उनका नाम रे, कद था उनका छोटा सा, सरपट उनकी चाल रे ....बंदे में था दम, वंदेमातरम.... सुनता रहता हूँ ।
गांधी जी बोले, पुत्तर मैं विचारों में हूं । तब तक न्यूज चैनल का reporter आया॥ भाई साहब अब धरती पर चलने का समय हो गया है । मैंने कहा थोड़ी देर और ठहरते हैं, बापू जी से बातें कर लें ।
मेरे मन में कई सवाल हैं, अगली बार जाकर मैं उस सवाल का जवाब गाँधी जी जरुर लूँगा ... शेष अभी है .....

हे प्रभु, बीवी दिलवा दो ...

एक भक्तगण गया हनुमान जी के मदिंर
रोते चिल्लाते उसने जब प्रवेश किया अंदर
बोला भक्त प्रभु से, हे मालिक मेरी भी नैया पार करो
इस बदनसीब अभागे पर अब तो कुछ उपकार करो
अब हमारी गली में नहीं रहा नहीं है कोई कुंवारा
मैं आया तेरी शरण में जो बच गया बेचारा
हे प्रभु, करवा दो मेरी भी एक बार शादी
फिर चाहे टेरीकाट की जगह पहनना पड़े मुझको खादी
बोले प्रभु, अजीब है इस दुनिया का यह चक्कर
अरे आया था तुझसे भी पहले अभी एक घनचक्कर
बोला था प्रभु, मेरी नैया पार करवा दो
मुझको या फिर मेरी बीवी को ही मरवा दो
सुना शादी से वह इतना तंग हो रहा
अरे फिर तू क्यूं शादी के लिए इतना रो रहा
हे प्रभु, मारो गोली उसको मेरा तो काम बना दो
और न सही तो, उसकी ही बीवी मुझको दिलवा दो
हे प्रभु, एक बार यह कर दो मेरी पूरी आस
शादी के इंतजार में चेहरे पर उग आई है घास
हाल जानकर उसका 'महाबीर' की आंखे भर आईं
रखकर सिर पर हाथ उन्होंने अपने दिल की बात बताई
सुन रे भक्त, मै तुझको सारी बात समझाता हूं
पहले अपनी करवा लूं, फिर तेरी करवाता हूं.......

तबरेज और मकसूद भी तो आजमगढ़ के हैं

मैं इस उम्मीद के साथ यह विचार भेज रहा हूं, जो अनायास नहीं उपजे हैं। एक दर्द था, एक पीड़ा थी, ऐसा लगा कहीं हम इंसानियत के साथ दगा तो नहीं कर रहें। आतंक का सिर्फ एक ही चेहरा होता है दहशत। वहीं इंसानियत का भी एक चेहरा है भाईचारा। मैनें इस दोनों को नजदीक से देखा है। बस मन उगलता गया और मैं लिखता गया। उम्मीद है आपके मंच पर मेरे इन विचारों को कहीं न कहीं जगह मिलेगी .....
आजमगढ़ के पिपरही गांव के पास सफारी और ट्रक में भिडंत़ शायद ही कभी भूल सकूंगा। 10 जुलाई 2008 की रात हुए इस हादसे में अमर उजाला के दो साथी मौके पर ही काल में समा गए, जबकि क्षतिग्रस्त सफारी के अंदर ही चार साथी जिंदगी और मौत से जूझ रहे थे। अंधेरी रात और तेज बारिश में सड़क पर गाड़ियां फर्राटे भर रही थे। इन चारों की चीख पुकार गाड़ियों के फर्राटे से कहीं अधिक थी, लेकिन किसी की मानवता नहीं जागी। इसी बीच गोरखपुर से आजमगढ़ जा रही एक मारुति वैन में सवार दो नव युवकों को इन चारों की आवाज सुनाई पड़ी। जिन्होंने किसी बात की परवाह किये हुए चारों को गाड़ी से बाहर निकाला और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया। इसी बीच हमारे अन्य साथी भी घटनास्थल पर पहुंच चुके थे।
चारों घायल साथी को गोरखपुर लाया गया। डाक्टरों ने इलाज शुरू किया, सबकी दुआएं और ऊपर वाले की मेहरबानी थी कि जिसके बचने की उम्मीद किसी को नहीं थी, वे आज हमारे साथ खबरों के माया जाल में उलझ चुके हैं। उन दोनों युवकों की संवेदना को सभी ने सलाम किया। अगर वे नहीं रूकते तो हमको और नुकसान हो सकता था। घटना के कई दिनों बाद तक इन दोनों ने चारों साथियों का कुशलक्षेम पूछा। कभी ऐसा लगा ही नहीं कि ये अजनबी थे। जब इनका फोन आता लगता कोई अपना हो। अमर उजाला ही नहीं, पूरे गोरखपुर ने इन दोनों युवकों को आंखों पर बैठाया। गोरखपुर प्रेस क्लब ने इन दोनों नवयुवकों के जज्बात को सलाम करते हुए इनको सम्मानित करने का फैसला लिया। इस घटना को करीब दो महीने बीत चुके। हर कोई अपने काम में व्यस्त। तभी एकाएक खबर आती है देश में हो रही आंतकी गतिविधियों में आजमगढ़ के युवकों की ज्यादा सहभागिता है। कनाट प्लेस में बम विस्फोट के पीछे दिल्ली पुलिस मुतभेड़ में मारे गए 20 साल के मोहम्मद आतिफ उर्फ बशीर और 19 वर्षीय मोहम्मद साजिद का हाथ होना बता रही है। मोहम्मद सैफ, जियाऊ जैसे ना जाने कितने युवा आजमगढ़ के बताये जा रहे हैं। ये वही आजमगढ़ है जिसकी पहचान कभी राहुल सांकृत्यायन हुआ करते थे, यह वही शहर है जहां कैफी आजमी ने कौमी एकता की नींव रखीं थी। वहां अब भाई ही भाई को शक की निगाह से देख रहा है। इसी शहर में अल्लामा शिब्ली नोमानी ने पेश की इंसानियत की मिशाल। मौजूदा हालत यह है हर जगह आजमगढ़ की ही चरचा हो रही है। हिंदु हो तो ठीक लेकिन मुसलमान हो तो गड़बड़। लेकिन तबरेज और मकसूद को आज भी गोरखपुर के अधिकांश लोग भगवान का फरिश्ता मानते हैं। यह तबरेज और मकसूद वहीं है जिन्होंने चार पत्रकारों की जान बचाई। समय रहते इन दोनों ने अगर इन्हें सफारी से बाहर न निकाला होता शायद मैं यह लेख भी न लिखा पाता। बात केवल तबरेज और मकसूद की ही नहीं। परवेश, तौहीर, काशिफ, नसीम आदि जैसे कई नाम है जिन्होंने अलग अलग सड़क दुर्घटनाओं में कई हिंदु परिवारों की रक्षा की है। आखिर ये भी तो उसी आजमगढ़ के हैं, जहां इन दिनों तलाशे जा रहे हैं इंसानियत के दुश्मन। पुलिस की काली सूची में आए आजमगढ़ के संजरपुर, फरिहा, सरायमीर गांव के आम लोगों का कहना है कि कुछ लोगों ने गड़बड़ियां कीं, लेकिन यहां के बाशिंदे बदनाम हो गए, यह कहां तक सही है।
अमित गुप्ता, अमर उजाला गोरखपुर।

सुना है उसके लबों से गुलाब जलते हैं

सुना है लोग उसे आंख भर के देखते हैं
उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं
सुना है रब्‍त है उस को खराब हालों से
सो अपने आप को बर्बाद करके देखते हैं
सुना है दर्द की गाहक है चश्‍मे नाज़ुक उसकी
सो हम भी उसकी गली से गुज़र के देखते हैं
सुना है उस को भी है शेरो शायरी से शगफ
सो हम भी मोजज़े अपने हुनर के देखते है
सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात करके देखते हैं
सुना है रात उसे चांद तकता रहता है
सितारे बामे फलक से उतर के देखते हैं
सुना है हश्र हैं उसकी ग़ज़ाल सी आंखें
सुना है उसको हिरन दश्‍त भर के देखते हैं
सुना है दिन को उसे तितलियां सताती हैं
सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं
सुना है रात से बढ़ कर है काकुलें उसकी
सुना है शाम को साए गुज़र के देखते हैं
सुना है उसकी सियह चश्‍मगी क़यामत है
सो उसको सुर्माफ़रोश आंख भर के देखते हैं
सुना है उसके लबों से गुलाब जलते हैं
सो हम बहार पर इल्‍ज़ाम धर के देखते हैं
सुना है आईना तमसाल है
जबीं उसका जो सादा दिल हैं...
बन संवर के देखते हैं
सुना है जब से हमाइल हैं उसकी गर्दन में
मिज़ाज और ही लाल-ओ-गौहर के देखते हैं
सुना है चश्‍मे तसव्‍वुर से दश्‍ते इमकां में
पलंग ज़ावे उस की कमर के देखते हैं
सुना है उसके बदन के तराश ऐसे हैं
कि फूल अपनी क़बाएं कतर के देखते हैं
वो सर्व-क़द है मगर बे-गुले मुराद नहीं
कि उस शजर पे शगूफ़े समर के देखते हैं
बस एक निगाह से लुटता है क़ा‍फ़‍ला दिल का
सो रह-रवाने तमन्‍ना भी डर के देखते हैं
सुना है उसके शबिस्‍तां से मुत्तसिल है
बहिश्‍तम कीं उधर के भी जलवे इधर के देखते हैं
रुके तो गर्दिशें उसका तवाफ़ करती हैं
चले तो उसको ज़माने ठहर के देखते हैं
किसे नसीब कि बे-पैरहन उसे देखे
कभी कभी दरो दीवार घर के देखते हैं
कहानियां ही सही सब मुबालग़े ही सही
अगर वो ख़्वाब है ताबीर करके देखते हैं
अब उसके शहर में ठहरें कि कूच कर जाएं
फ़राज़ आओ सितारे सफ़र के देखते हैं---faraaz

सर्दी की खूबसूरती


सर्दियों में बला की खूबसूरत नजर आने लगती हैं
महिलाएं भले ही खुद को आकर्षक बनाने के लिए तरह-तरह के तरीके अपनाती हों लेकिन सच यह है कि पुरषों को महिलाएं सर्दियों में ही ज्यादा आकर्षित लगती हैं । पोलैंड की वरॉकलो यूनिवर्सिटी की टीम ने एक शोध में पाया है कि सर्दियों में महिलाओं की देह पुरषों को अपनी तरफ ज्यादा आकर्षित करता है और उन्हें मिलन के लिए उत्तेजित करती है । मिलन के लिए पुरुषों को प्रेरित करती हैं ‘द संडे टैलीग्राफ’ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक शोधकर्ताओं ने बताया कि है यूं तो मौसम के अनुसार स्त्री की सुंदरता और आकर्षण में बदलाव के बारे में साफ तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता है लेकिन एक बात तो साफ है कि सर्दियों में महिलाएं ज्यादा आकर्षक लगती हैं । शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में ११४ पुरुषों को शामिल किया गया । इन्हें अलग -अलग मौसम में महिलाओं की तस्वीरें दिखा कर उनकी राय जानी गई । इन तस्वीरों में काले रंग के स्विम सूट पहने, अलग -अलग आकार के वक्षों वाली महिलाएं और जवान औरतों के चेहरों वाली तस्वीरें शामिल थीं । पुरुषों की राय जानने के बाद सामने आए नतीजे में पाया गया कि गर्मियों के बजाय सर्दियों में महिलाओं का शरीर व छाती ज्यादा आकर्षक लगती है और उन्हें मिलन के लिए प्रेरित करती है । हालाकिं चेहरे के मामले में मौसम का कोई प्रभाव नहीं देखा गया।

सदन में उछली मर्यादा ...


हमन है इश्क

हमन है इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या ?
रहें आजाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या ?
जो बिछुड़े हैं पियारे से, भटकते दर-ब-दर फिरते,

हमारा यार है हम में हमन को इंतजारी क्या ?
खलक सब नाम अपने को, बहुत कर सिर पटकता है,

हमन गुरनाम साँचा है, हमन दुनिया से यारी क्या ?
न पल बिछुड़े पिया हमसे न हम बिछड़े पियारे से,

उन्हीं से नेह लागी है, हमन को बेकरारी क्या ?
कबीरा इश्क का माता, दुई को दूर कर दिल से,

जो चलना राह नाज़ुक है, हमन सिर बोझ भारी क्या ?

इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

कैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो
अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार
घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तहार
रौशन हुए चराग़ तो आँखें नहीं रहीं
अंधों को रौशनी का गुमाँ और भी ख़राब
मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता
हम घर में भटके हैं कैसे ठौर—ठिकाने आएँगे
हो गई है पीर —पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
पत्तों से चाहते हो बजें साज़ की तरह
पेड़ों से पहले आप उदासी तो लीजिए
यहाँ दरख़्तों के
साये में धूप लगती है
चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए
जियें तो अपने बग़ीचे में गुलमोहर के तले
मरें तो ग़ैर की गलियों में गुलमोहर के लिए
यहाँ तक आते—आते सूख जाती हैं कई नदियाँ
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा
मौत ने तो धर दबोचा एक चीते की तरह
ज़िन्दगी ने जब छुआ कुछ फ़ासला रख कर छुआ
मत कहो आकाश में कुहरा घना है
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है
मैं भी तो अपनी बात लिखूँ अपने हाथ से
मेरे सफ़े पे छोड़ दे थोड़ा—सा हाशिया

जारी है पत्रकारिता

शराब के संग डेक पर

कबाब के संग मेज पर

शबाब के संग सेज पर

जारी है, इस दौर में पत्रकारिता

गन माईक के दम से

कलम के अहम् से

लक्ष्मी की चाहत में

जारी है, जीवन बिगारने बनानेकी पत्रकारिता

अनैतिक राहो से

अमानविये निगाहों से

अश्रधय भावों से

जारी है, लुटने खसोटने की पत्रकारिता

टी आर पी की चाह में

विजुअल की चोरी से

मनगढ़ंत स्टोरी से

जारी है, कलमुही पत्रकारिता

भुत प्रेत पिचास से

काम और अपराध के बेहूदी बकवास से

जारी है, राक्षसी पत्रकारिता

मानिए न मानिए आज के इस दौर में हो गई है

बदचलन औ बेहया पत्रकारिता .............

प्रिंसिपल ऋचा बावा के घर से 36 लाख रुपए नकद मिले (सोमवार, 7 जनवरी )

मोबाइल से निकले उद्योगपतियों, नेताओं और छात्राओं के नंबर
प्रिंसीपल ऋचा बावा के घर में सर्च कर रही पुलिस को करीब 36 लाख रुपए मिले हैं । इतनी मोटी रकम देखकर जांच दल भी हैरान है । एसएसपी अर्पित शुक्ला, एसपी (डी) परमवीर सिंह परमार और एसपी सिटी वन सुरिंदर कुमार कालिया के नेतृत्व में पुलिस दल सुबह से ही प्रिंसीपल के घर में कातिलों का सुराग लगाने के लिए सर्च कर रहा था । इस दौरान प्रिंसीपल के बैडरूम से दो सूटकेस मिले हैं । पुलिस ने प्रिंसीपल के घर से करीब 36 लाख से ज्यादा रकम बरामद की है । प्रिंसीपल के घर से कुछ सीडीज मिली हैं, जिन्हें पुलिस चलाकर देख रही है। हालाकिं इतनी मोटी रकम मिलने की कोई भी अधिकारी पुष्टि नहीं कर रहा । एसएसपी अर्पित शुक्ला का कहना है कि वे मंगलवार को घर से मिले सामान बारे जानकारी देंगे ।

कहां से आई इतनी मोटी रकम
प्रिंसीपल के घर से इतनी मोटी रकम मिलने के बाद अब यह सवाल पैदा हो गया है कि आखिरकार यह रकम कहां से आई थी । पुलिस प्रिंसीपल के परिजनों को भी तलब करेगी । पुलिस यह भी जांच करेगी कि इतनी मोटी रकम उन्होंने कैसे और किस माध्यम से कमाई थी ।
घर से मिले और सुराग
पुलिस ने सोमवार को प्रिंसीपल के घर की सर्च की । देर शाम तक एसपी रैंक के अधिकारी प्रिंसीपल के घर में रखे दस्तावेज खंगाल रही थी । इस दौरान पुलिस को तीसरा खून से सना दस्ताना मिला है । पुलिस के हाथ कुछ सुराग लगे हैं, जिससे कातिल की गर्दन तक पंहुचना आसान होगा । जबकि रसोई में काटे गए करेले और ब्रैड मिली है ।

पुलिस खंगालेगी बैंक खाते
प्रिंसीपल के घर से इतनी मोटी रकम मिलने के बाद जांच टीम अब प्रिंसीपल ऋचा बावा के बैंक खाते भी खंगाले । पुलिस प्रिंसीपल के परिजनों से यह भी जानकारी जुटा रही है उनके कहां-कहां खाते और लॉकर हैं । जाँच में जुटी पुलिस ने मोबाइल लिस्ट को खंगालना शुरू कर दिया है । लिस्ट लंबी है, इसमें लैक्चरर्स, छात्राओं, उद्योगपतियों और राजनीति में अच्छी पैठ रखने वाले लोगों के नंबर हैं । मामला शहर के रसूखदार लोगों से जुड़ा होने के कारण पुलिस अधिकारी चुप्पी साधे हैं । पुलिस ने लिस्ट में मिले नंबर पर फोन किए तो पहला फोन छात्रा ने उठाया। पुलिस जांच करेगी कि वह कौन-सी छात्राएं हैं, जो मैडम के करीब थीं और उनके निजी मोबाइल पर फोन करती थीं । गोरतलब है कि प्रिंसीपल के सख्त रवैये से छात्राएं थरथर कांपती थीं। यह सवाल पैदा होता है कि प्रिंसीपल से छात्राएं कौन-सी ऐसी बात करती थीं, जो दफ्तर या घर में नहीं हो सकती थी। कुछ कालें रात में आती थीं। पुलिस मामले में जमीन विवाद को भी जोड़ कर देख रही है। पुलिस ने सोमवार को कुछ लोग पूछताछ के लिए हिरासत में लिए हैं, जो कालेज से जुड़े हैं।लंबी बात करता था उद्योगपति प्रिंसीपल के मोबाइल लिस्ट में कुछ ऐसे नंबर भी हैं, जिन पर दिन-रात लंबी बातचीत होती थी। इसमें एक उद्योग पति का भी नंबर निकला है । उद्योगपति प्रिंसीपल से करीब पौना-पौना घंटा फोन पर बात करता था। पुलिस ने मंगलवार को पूछताछ के लिए कुछ लोग तलब किए हैं ।

रात को आती थी लग्जरी गाड़ी
केऍमवी के बाहर कई बार रात के समय लग्जरी गाड़ी खड़ी रहती थी । इस बात का खुलासा एक व्यक्ति ने नाम न बताने की शर्त पर किया है। पुलिस जांच में ऋचा बावा के फैमली फ्रैंड्स और करीबी लोगों को तलब करेगी ।
अतिंम बार प्रिंसीपल बावा ने जिस शक्स से बात की थी वह पंजाब राज्य बिजली बोर्ड का पूर्व उच्च अधिकारी है । वह अक्सर रात लग्जरी कार में कालेज आया करता था । पुलिस ने उसे भी पूछताछ के लिए मंगलवार को बुलाया है ।
रसोइए किशोर के कमरे से दो मोबाइल मिले हैं । एक उसका है जबकि दूसरा कालेज में पढ़ती छात्रा का है । अपने मोबाइल से किशोर ने कई बार अपनी पत्नी से बात की थी । कालेज के सूत्र बताते हैं कि प्रिंसीपल ने छात्रा का मोबाइल उस समय कब्जे में ले लिया था जब वह दोआबा कालेज के अपने प्रेमी से फोन से बात कर रही थी । अब यह पहेली बनी हुई कि छात्रा को मोबाइल किशोर के पास कैसे आ गया ।
शेष अभी बाकी है .......
महाबीर सेठ - जालंधर

केएमवी की प्रिंसीपल का कत्ल (पहली ख़बर 6JANUARY 2008)

जालंधर में दिल दहला देने वाली वारदात
जालंधर में शनिवार देर रात हुई एक दिल दहला देने वाली वारदात में टांडा रोड स्थित कन्या महाविद्यालय (केएमवी) में अज्ञात हत्यारों ने प्रिंसीपल समेत चार लोगों की गला रेत कर हत्या कर दी। पुलिस ने हत्या का केस दर्ज कर डा। ऋचा बावा, रसोइए किशोर मंडल, चौकीदार शम्सुद्दीन और तरसेम के शवों का पोस्टमार्टम करवाया। देर शाम डा। बावा और चौकीदार तरसेम का संस्कार कर दिया गया । पुलिस का मानना है कि ऋचा बावा के पास कोई सीक्रेट डॉक्यूमैंट अथवा सीडी या कुछ ऐसा था जो हत्यारों के खिलाफ था। हत्त्यारों ने किसी दस्तावेज या सीडी में कैद राज को दबाने के लिए हत्याएं की हैं। तेजधार हथियारों से लैस हत्यारों ने डा। बावा और तरसेम को गर्दन पर एक ही वार कर मौत के घाट उतार दिया। किशोर और शमसुद्दीन की गर्दन के अलावा चेहरों पर गहरे घाव के निशान मिले हैं। एक साजिश के तहत आए कातिलों ने कॉलेज में बने प्रिंसीपल के घर में रखे करीब तोले सोने के गहने और करीब सत्तर हजार रुपयों को छुआ तक नहीं। सुबह करीब साढ़े छह बजे सफाई कर्मचारी संतोष कॉलेज में बने प्रिंसीपल बावा के घर की सफाई करने गई थी। सामान बिखरा देख वह शोर मचाती बाहर आ गई । संतोष, प्रिंसीपल के ड्राइवर जयसिंह ने कोठी के पिछवाड़े किशोर मंडल, शम्सुद्दीन और तरसेम के खून से सने शव देखकर संस्कृत केएमवी कालेज की प्रिंसीपल निशा रानी भार्गव को सूचना दी। निशा और होस्टल वार्डन परमजीत कौर कमरे में गई तो मैडम का शव भी अंदर खून से सना हुआ पड़ा । ऐसा माना जा रहा कि डा। बावा की हत्या करने के बाद आरोपी घर से बाहर आए तो उनके हाथ खून से रंगे हुए थे। चौकीदार शम्सुद्दीन को आरोपियों ने घर के पिछवाड़े घेर कर मारा। शोर सुनकर रसोइया किशोर मंडल और तरसेम आए तो उन्हें भी ठिकाने लगा दिया गया । हालाकिं किशोर ने हत्यारों का मुकाबला करने की कोशिश की होगी , क्योकिं सब्जी काटने वाला चाकू उसकी लाश के पास पड़ा था। तरसेम की लाश पास ही दस फीट गहरे खड्ढे में पड़ी थी। शम्सुद्दीन के शव के पास खून से सना दस्ताना भी पड़ा था।हत्यारे सिर्फ मोबाइल ले गए ।प्रिंसीपल के घर से कातिल केवल उनका व्यक्तिगत मोबाइल फोन ही ले गए हैं, जबकि दूसरा घर में ही स्विच ऑफ था। पुलिस जांच कर रही है कि आखिर मोबाइल फोन में ऐसा क्या था, जो हत्यारे उसे साथ ले गए हैं। प्रिंसीपल के मोबाइल में ही उसके परिचितों के नंबर थे। शहर का एक रबड़ उधोगपतियों और कुछ अन्य रसूखदार लोग भी प्रिंसीपल के करीबी थे। पुलिस अधिकारी देर रात तक मोबाइल की एक माह की इनकमिंग और आउटगोइंग कॉल्स की लिस्ट खंगाल रहे थे। संभावना है कि जल्द ही इस लिस्ट की मदद से कत्ल की इस वारदात के सुराग मिल जाएगा ।
पुलिस को उलझा रहे ये सवाल
मैडम के मोबाइल में क्या था ?
किस चीज की तलाश में खंगाल मारा हत्यारों ने घर ?
मैडम के करीबी लोगों की नहीं होती थी रजिस्टर में एंट्री ?
रात में ही क्यों लगती थी चौकीदार शम्सुद्दीन की ड्यूटी ?
परिचित थे हत्यारे!
एसएसपी अर्पित शुक्ला ने बताया कि प्राथमिक जांच कहती है कि आरोपी प्रिंसीपल के परिचित थे। हत्या लूट के उद्देश्य से नहीं, बल्कि सोची-समझी साजिश के तहत की गई है। दिन में भी कॉलेज में जाने के लिए बाकायदा अनुमति लेनी पड़ती है। इसलिए तय है कि देर रात कॉलेज में आने वाले लोग प्रिंसीपल के परिचित ही रहे होंगे ।
खबरें बहुत हैं ....
आप पढ़े और पंजाब पुलिस को बताएं की माजरा क्या है
क्रमशा : -
महाबीर सेठ

प्रिन्सिपल ऋचा बावा के कत्ल की सीबीआई जाँच क्यों नही ?

आरूषि व हेमराज हत्याकांड को नोयडा में मीडिया जिस तरह परदे पर दिखा रही है, मान लेते हैं कि ठीक है। लेकिन देश के अन्य भागों में ऐसे कई अनगिनत हत्याएं हो रही हैं , जिसमें राजनेता से लेकर पुलिस के आला अधिकारियों की सांठ-गांठ होती है । दिल्ली में बिल्ली छत से कूदती है तो उसे १५५ देश देखता है, लेकिन जब दिल्ली के बाहर कोई बड़ी घटना घट जाती है तो उसे कोई नहीं देख पाता। आरूषि-हेमराज हत्याकांड के पीछे की सच्चाई जानने में जुटी नोयडा व दिल्ली की प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया को जालंधर (पंजाब) में चौहरे कत्ल के राज से भी पर्दा उठाने की कोशिश करना चाहिए। पंजाब में जालंधर को मीडिया सेंटर माना जा रहा है, लेकिन जालंधर में एक ही रात में चार लोगों का कत्ल होता है, कुछ दिन तक पुलिस के साथ-साथ मीडिया दिग्गज अंधेरे में तीर चलाते हैं , बाद में पुलिस चुप के साथ मीडिया चुप हो जाती है । १९० दिन बाद भी पुलिस को कोई अहम सुराग नहीं लगा है। सबसे बड़ी बात तो यह कि जालंधर में जिसकी हत्या की गई वह कोई मामूली हस्ती नहीं थी, बल्कि समाज की प्रतिष्ठित महिला थी। जालंधर के कन्या महाविद्यालय (केएमवी) की तेजतर्रार प्रिंसीपल डॉ रीता बावा थीं। जिनका समाज के कई तबकों से तालुक था। शिक्षा जगत में अपने नाम की लोहा मनवा चुकीं डॉ ऋचा बावा का नाम राजनीति गलियारों से लेकर बालीवुड के उम्दा कलाकारों के साथ जुड़ा रहा। जालंधर ही नहीं पंजाब, दिल्ली, कलकत्ता, हिमाचल, नोयडा, मुंबई और देश के अन्य स्थानों पर उनके अच्छे जानने वाले थे। पर ऐसा क्या हुआ कि एक ही रात में उनके चौकीदार समेत उनकी हत्या कर दी गई। पुलिस भले ही जांच का बहाना बनाकर मामले से पर्दा न उठाना चाहे, लेकिन खुद सरकार भी इस मामले से परदा नहीं उठवाना चाह रही है। क्रमशा :

पंज-आब में खतरे की घंटी

पंजाब की भूमि अपनी पांच नदियों की विशेषता से प्रसिध्द है। बहुत कम लोग जानते हैं कि पंजाब में केवल पांच नदियां नहीं हैं। इसकी भूमि पर रक्त नाड़ियों की भांति अनेक छोटी-बड़ी नदियां प्रवाहित होती हैं। बल्कि हर नगर की अपनी एक नदी है। मगर हमारे लोग नदियों को कम ही पहचानते हैं।जब मैं प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन कर रहा था तो मेरे सामने बार-बार देविका नदी की धारा चलने लगती थी। पंजाब के मानचित्र में और फिर भूमि पर देविका को देखता तो मुझे अनुभव होता कि वह नदी भी कभी एक शक्तिशाली जलधारा रही होगी। इसे ही अलबरूनी ने अपने ग्रंथ 'अलहिंद' में कहा है कि वह सौवीरा अर्थात मुल्तान देश में प्रवाहित थी।समय की गति के साथ देविका का स्रोत काफी हद तक कम हो गया और लोगों ने भी उसका नाम देविका से देग और फिर लोक मुहावरे में 'डेक' बना लिया। देग के ईद-गिर्द बसने वाले लोगों ने मुझे बताया था कि-एक बरसाती नदी है, मगर जब उसमें पर्वतमाला का सांवला पानी आता है तो फसल खूब पैदा होती है। इसके पानी में ऊपर पहाड़ से गारा बहुत आता है। इसका मतलब है कि देग का स्रोत ऊपर हिमालय पर्वत नहीं, बल्कि शिवालिक पर्वतमाला में ही है। मगर हमें लगता है कि कहीं नगर के बाहर निकट ही इसका स्रोत है। क्योंकि अचानक ही इसके पाट में पानी भर जाता है। अपने स्रोत से चलकर रावी में संगम तक उसकी रफ्तार इसी प्रकार की अकस्मात किस्म की है। विश्वासहीन सी... देविका अथवा देग का स्रोत मैनाक पर्वतमाला (शिवालिक) में जम्मू क्षेत्र के जसरोता के आंचल में से आरंभ होता है, मगर उस पर्वतमाला पर क्योंकि हिमपात नहीं होता, इसलिए देविका का स्वभाव अब सदानीरा नहीं रहा। वर्षा ऋतु के अलावा उसमें बहुत कम पानी रहता है। फिर भी उसकी धारा कुछ समय में ही अपने क्षेत्र की भूमि को जितना उपजाऊ बना देती है, उसी वरदान के कारण लोग उसे वर्ष भर याद रखते हैं। मोह-मोहब्बत से।पाणिनी ने भी 'अष्टाध्यायी' में लिखा है कि देविका अपने तटों पर रौसली (रजसवला अथवा बरसाती) मिट्टी की एक तह छोड़ जाती है जो फसल के लिए लाभकारी होती है। किसान को सुख देती है।मेरे एक मित्र जगदीश सिंह नामधारी ने बताया था कि जितना बढ़िया बासमती धान इसके पानी के निकट पैदा होता है, और कहीं शायद ही होता हो।मंडी मुरीदके और कामोके से जो सुगंधित चावल विदेशों में जाते हैं, उनका मूल्य बहुत अधिक है।'स्यालकोट और शेखूपुरा के क्षेत्र को तो देग ने स्वर्ग बना दिया है।' नामधारी जगदीश सिंह कहता था हंसकर।पिछले वर्ष जब मैं 'उन्नीसवीं सदी का पंजाब' नामक पुस्तक पढ़ रहा था तो उसमें स्यालकोट शहर के वर्णन में डेक नदी का स्वरूप पूरी तरह साकार हो गया,'स्यालकोट नगर में निचली तरफ एक नदी है जिसे डेक (देग) कहते हैं। यह नदी वर्षा के दिनों में जीवित हो जाती है। कहा जाता है कि अतीत में यह सदानीरा थी। वर्षा में इसे पार करना कठिन था। हजरत शाह दौला दरवेश ने आने-जाने वाले लोगों के लिए इसके पाट पर एक पुल बनाया, जिसे शाह दौला पुल कहते थे।' देग नदी खैरी रहाल नाम के गांव के पास से फूट कर जम्मू के गांव-मोरचापुर डबलड़, मांजरा और आरीना आदि में प्रवाहित होती है। सईयांवान गांव के निकट और करटोपा के बीच में पहुंचकर यह कहीं सूखी और कहीं प्रवाहित दिखाई देती है। वहां से यह स्यालकोट के नीचे की ओर जा निकलती है। आगे चलकर सोहदरा तथा भोपाल वाला तक चली जाती है। फिर कावांवाला, धड़ और नुकल गांव के बराबर बिखर जाती है। वहां इसका नाम 'कुलहरी' है। नदी की दूसरी ओर स्यालकोट के पूर्व में रंगपुर, रायपुरा तथा जठापुरा बस्तियां हैं। इन्हें बडेहरा खतरियों ने आबाद किया था। रंगपुर में कागज तैयार करने वाले कारीगर रहते हैं। माबड़ों की औरतें रंगदार रेशमी धागे से सफेद सुर्ख वस्त्रों पर कसीदाकारी का काम करती हैं।पंजाब में फिरंगी सरकार से पूर्व रावी और चिनाब के बीच वाला अधिक क्षेत्र बिल्कुल जंगल था और जंगली लोग देग के निकट आबाद थे। इन लोगों के बारे में ही प्रो। पूर्ण सिंह ने अपनी पुस्तक 'खुले आसमानी रंग' में लिखा था-'यहां मुझे मालुम हुआ कि हवा, पानी, मिट्टी, प्रकाश, चांद, सूर्य, आदमी, जानवर, पंछी, प्यार के बारीक रेशमी धागे से एक जीवन में बंधे हुए हैं। मुर्गे की बांग और प्रभाव के मेघों के रंगों का सौंदर्य दोनों की कोई मिली-जुली उकसाहट है। फूलों का खिलना और सूर्य प्रकाश का नित नए विवाह की भांति प्रसन्नता और चाव में अपना एक जादुई अचम्भा है। किरण फूल के दिल में कुछ कह जाती है और दिन भर फूल अपनी छोटी सी झोंपड़ी में अनंत हुआ, आता ही नहीं।' प्रो। पूर्ण सिंह की कविता 'जांगली छोहर' भी इस क्षेत्र के जीवन की गवाही बनती है। प्रो. पूर्ण सिंह महान प्रतिभा का कवि था और वह मानवीय मानसिकता में गहराई तक पहुंचकर मानव के सबसे अधिक प्रिय भाव को प्रकाशित कर देता था। उसने इस क्षेत्र के बारे में लिखा था, 'मुझे महसूस हुआ है जैसे मैं किसी जादू के देश में आ गया हूं। यहां बच्चे फूल हैं, वृक्ष मानव हैं और नारियां सौंदर्य का साकार स्वरूप दिखाई देती हैं। धरती आकाश जहां मिलते हैं, वहां ही मैत्री का स्नेह है।'पुरातन शास्त्रों में आता है कि मूला स्थान अर्थात मुल्तान भी देविका की धारा के निकट ही था। यह बात निश्चित है कि देविका की धारा मुल्तान तक भी जाती होगी। अवश्य ही...देग नदी का फासला अपने स्रोत से चलकर रावी में संगति तक दो सौ किलोमीटर से अधिक ही है। रावी के पानी में यह दाएं हाथ से शामिल होती है। जिस प्रकार रावी और पंजाब की शेष नदियों की चाल तेज रही है, वैसे ही लोगों के स्वभाव भी तीखे और रुष्ट किस्म के रहे हैं। नगरों में यदि शिष्ट स्वभाव के कुटिल लोग रहते थे तो दूर जंगलों में सादे लोग भले मानस किस्म के-जिन्हें हम जांगली कहते थे। वे जांगली खुद को राजपूत समझते थे। वे शूरवीर लोगों से अपना विरसा मिलाकर प्रसन्न होते थे। नूरा नहंग इस क्षेत्र का लोककवि था। वह अपने खेतों में झोंपड़ी बनाकर रहता था और आज भी जांगली लोगों के दिलों की धड़कन में बसा-रसा हुआ है-पंजाबियों की बात कैसीलड़ना है किस काम कारक्तपात होता है लोगों कारक्तरंजित हुआ है नदी का पानी।कई जगहों पर रावी और देग के निकट बसने वाले लोगों की भाषा बहुत मधुर और शिष्ट है-जितवल यार उतेवल काअबा।मैं हज करों दिहुं रातीं।न गुण रूप न दौलत पल्ले।हिक ओंदी जात पछाती।रावी के उत्तर में रावी और चिनाब के बीच के क्षेत्र में जो छोटी तूफानी नदियां चलती हैं, उनमें से देग अधिक शक्तिशाली है। शायद कभी, शताब्दियों पूर्व जब सिंधु और राजस्थान में सागर रहा होगा और शिवालिक में हिमपात तथा वर्षा का जोर रहा होगा, तब देविका भी शक्तिशाली धारा के रूप में चलती होगी। मगर अब तो एक मामूली जलधारा ही है। हां, पूर्ण भगत और महान पंजाबी लेखक और चिंतक गुरब2श सिंह प्रीतलड़ी इसी क्षेत्र से संबंध रखते थे, इसलिए देविका भी महान रही होगी। मगर अब तो मुझे लगता है, जैसे वह एक मुल्तानी काफी सुनाकर हमें कह रही हो-सजनां दी महमानी खातरखून जिगर दा छानी दा।की साडा मंजूर ना करसेंहिक कटोरा पाणी दा?देविका अथवा देग का स्रोत मैनाक पर्वतमाला (शिवालिक) में ज6मू क्षेत्र के जसरोता के आंचल में से आरंभ होता है, मगर उस पर्वतमाला पर क्योंकि हिमपात नहीं होता, इसलिए देविका का स्वभाव अब सदानीरा नहीं रहा। वर्षा ऋतु के अलावा उसमें बहुत कम पानी रहता है। फिर भी उसकी धारा कुछ समय में ही अपने क्षेत्र की भूमि को जितना उपजाऊ बना देती है, उसी वरदान के कारण लोग उसे वर्ष भर याद रखते हैं। मोह-मोहब्बत से...। पाणिनी ने भी 'अष्टाध्यायी' में लिखा है कि देविका अपने तटों पर रौसली (रजस्वला अथवा बरसाती) मिट्टी की एक तह छोड़ जाती है जो फसल के लिए लाभकारी होती है -साभार-सुजलाम

पानी- याद आएगी नानी

तेल का व्यापार दुनिया में समृद्धि का पर्याय बनकर उभरा है लेकिन संभव है, आने वाले कुछ दशकों में पानी का करोबार तेल का प्रतिस्पर्धी व्यापार बनकर उभरे। दुनिया में पानी का बाकायदा आयात शुरू हो गया है। स्पेन के शहर बार्सिलोना ने फ्रांस से 5॰ लाख गैलन पानी का आयात किया है। बार्सिलोना में बगीचों में पानी देने पर रोक लगा दी गई है। यदि कोई पानी देता पाया जाता है उसे पर 13॰॰॰ डालर का जुर्माना तय है। बात स्पेन की नहीं है, और भी देश इस लाइन में है। साइप्रस यूनान से पानी खरीदेगा। आस्ट्रेलिया के कई शहर किसानों व भवन निर्माताओं से पानी खरीद रहे हैं। चीनी हिमालयी पानी की धारा का रुख मोडने के प्रयास में है। अमरीका के कैलिफोर्निया में पहली बार पानी की राशनिंग की जा रही है। तो पानी होगा नीला सोना -डाऊ केमीकल्स के अध्यक्ष एंड्रयू लेवरिस ने फरवरी में विश्व आर्थिक मंच की बैठक में कहा था कि पानी इस शताब्दी का तेल है। यह नीला सोना बनता जा रहा है। पानी का विश्व कारोबार -ग्लोबल इनवेस्टमेंट रिपोर्ट 2॰॰7 के अनुसार विश्व पानी बाजार करीब 5॰॰ अरब डालर का है। इसमें पेयजल वितरण, प्रबंधन और अपशिष्ठ उपचार व कृषि जल शामिल हैं। पेयजल की खपत - दुनिया भर में इंसानी जरुरतों के लिए हर रोज 24.॰5 अरब लीटर पीने योग्य पानी की आवश्यकता है, लेकिन करीब 1॰ अरब लीटर स्वच्छ जल ही- उपलब्ध। -कहां जाता है पानी - संयुक्त राष्ट्र के अनुसार विश्व का 97 प्रतिशत पानी खारा है। शेष पानी की आपूर्ति उद्योग 2॰ प्रतिशत, कृषि 7॰ प्रतिशत और घरेलू उपयोग 1॰ प्रतिशत। बढ गया पानी का उपयोग -ज्यूरिख की एक कंपनी ससटेनबल एसेट मैनेजमेंट (एसएएम)ग्रुप इनवेस्टमेंट कंपनी की 2॰॰7 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ताजा पानी का उपयोग बढकर लगभग दो गुना से अधिक हो गया है। और बढेगी पानी की मांग -विश्व की आबादी 195॰ में 2.5 अरब थी। आज यह करीब 6.3 अरब है और इसके 2॰5॰ तक 9 अरब हो जाने की उम्मीद है। साफ है इतनी बडी आबादी को खिलाने के लिए और सिंचाई के पानी की जरूरत होगी। ये भी हैं कारण आबादी बढने के साथ बढता प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, पिघलते ग्लेशियर और घटता भूमिगत जल भी संभावित जल संकट के अन्य कारण हैं। भारत और चीन के लिए चिंता का सबब पिघलते ग्लेशियर भारत और चीन के लिए चिंता का सबब हैं। भारत और चीन की सभी प्रमुख नदियां -ब्रह्मपुत्र, सिंधु, यांगत्सी, गंगा और मिकांग हिमालय-तिब्बत के पठार से निकलती हैं। दुनिया की करीब 38 प्रतिशत आबादी को यह पानी उपलब्ध कराता है। जलवायु परिवर्तन के चलते ग्लेशियर पिघलने से आने वाले वर्ष में जल संकट और बढने की आशंका है।

रोटी की चाह

है रोटी की चाह जिन्हें, क्या आएगी उनको कविता

क्या कभी किसी भूखे ने, लिखी कोई कविता

हे कवि, क्या है उद्देश्य तुम्हारा

क्या सौंदरय वणॆन तक सीमित है तुम्हारी कलम

क्या नहीं दिखती भूख बेहाली

क्या तुमको दिखती नहीं गरीबी की जलन

हे रचनाकार, कभी भी शायद रहे होंगे भूखे

तुम तो उपवास मनाते हो,अरे उनका तो सोचो जो हर दिन उपवास रहते हैं

ये वे हैं जिन पर कोई कुछ लिखता नहीं

ये वे हैं जिनको जंचती कोई कविता नहीं

ये नंगे भूखे हैं, नहीं विद्या का ग्यान इन्हें

तुम्हारी लेखनी की गहराई का न है भान इन्हें

करो कुछ इनके लिए भी करो, कविता से नहीं करमों से

तुम्हारी कविता में है वो शीतलता नहीं

शांत करे जो इनके पेट की जलन

गरीबों की नहीं, गरीबी को मिटाना है

आज इंसान अपने सोच व मन से गरीब है

दूर करना है अपनी सोच को हमें

भूख नहीं पर अपनी रोटी को बांट सकते हैं हम.....

महाबीर सेठ- जालंधर

सिर्फ मेरे लिए हो तुम ....


यही तो है सच्चा प्यार
लैला मजनू का
हीर राँझा का
सोहनी महिवाल का
और प्यार करने वालों का
जिन्दगी प्यार से जिए जा .....
तुम मेरे लिए, अहसास का दूसरा नाम हो
तुम मेरे लिए, पेड़ की शीतल छाँव हो
तुम मेरे लिए, आत्मा की पुकार हो
तुम मेरे लिए, एक खुली किताब हो
तुम मेरे लिए, एक नई जोश हो
तुम मेरे लिए, शान्ति का एक भाव हो
तुम मेरे लिए, ख़ुद को समझने की कोशिश हो
तुम मेरे लिए, एक अनकही कशिश हो
तुम मेरे लिए, एक शान्ति समुन्दर हो
तुम मेरे लिए, सबसे सुंदर हो
तुम मेरे लिए, जीवन की स्फूर्ति हो
तुम मेरे लिए, सादगी की एक मूर्ति हो
तुम मेरे लिए, एक मंजिल समान हो
तुम मेरे लिए, एक मन्दिर समान हो
तुम मेरे लिए, सपना साकार हो
तुम मेरे लिए, पायल की मधुर झंकार हो
तुम मेरे लिए, जीने की आश हो
तुम मेरे लिए, एक विश्वाश हो
तुम मेरे लिए, एक नई सुबह हो
तुम मेरे लिए, जीवन का आगाज हो
तुम मेरे लिए, प्रस्फुटित आवेग हो
तुम मेरे लिए, हवा का चंचल वेग हो
ये जाने वफ़ा, सिर्फ मेरे लिए हो तुम ....
महाबीर सेठ, जालंधर

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